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आवश्यक
हारिभद्रीयवृत्तिः विभाग-१
॥१३॥
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दर्छ कयं विवाहं जिणस्स लोगोऽवि काउमारद्धो ३३ । गुरुदत्तिआ य कण्णा परिणिजंते तओ पायं ॥ २४ ॥ दत्तिव्व दाणमुसभं दितं दई जणंमिवि पवत्तं । जिणभिक्खादाणंपि हु, दुई भिक्खा पवत्ताओ ३४ ॥२५॥ मडयं मयस्स देहो तं मरुदेवीइ पढमसिद्धत्ति । देवेहि पुरा महिअं ३५ झावणया अग्गिसक्कारो॥ २६ ॥ सो जिणदेहाईणं देवेहि कओ ३६ चिआसु थूभाई ३७ । सद्दो अ रुपणसद्दो लोगोऽवि तओ तहा पगओ ३८ ॥२७॥ छेलावणमुक्किट्ठाइ बालकीलावणं व सेंटाई ३९ । इंखिणिआइ रुअं वा पुच्छा पुण किं कहं कजं? ॥२८॥ अहव निमित्ताईणं सुहसइआइ सुहदुक्खपुच्छा वा ४०। इच्चेवमाइ पाएणुप्पन्नं उसमकालंमि ॥ २९॥ किंचिच्च (त्थ) भरहकाले कुलगरकालेऽवि किंचि उप्पन्नं । पहुणा य देसिआई सव्वकलासिप्पकम्माई ॥ ३०॥ (भाष्यम् )
॥१३३॥
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