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ज्ञाताधर्म-IS कथाङ्गम्
॥१६५॥
साओ पूरयंती वयणमिणं बेति सा सकलुसा ॥३॥ होल वसुल गोल णाह दइत पिय रमण कंत
९माकसामिय णिग्घिण णित्थक्क । छिण्ण णिकिव अकयलुय सिढिलभाव निल्लज्ज लुक्ख अकलुण जिणरक्खिय
न्दीज्ञाते मज्झं हिययरक्खगा!॥४॥णहु जुजसि एक्कियं अणाहं अबंधवं तुज्झ चलणओवायकारियं उज्झिउं
जिनरक्षिमहण्णं । गुणसंकर ! अहं तुमे विहूणा ण समत्थावि जीविउं खणंपि ॥५॥ इमस्स उ अणेगझसमगर
Iतचलनं सू. विविधसावयसयाउलघरस्स । रयणागरस्स मज्झे अप्पाणं वहेमि तुज्झ पुरओ एहि णियत्ताहि जइसि कुविओ खमाहि एकावराहं मे ॥ ६॥ तुज्झ य विगयघणविमलससिमंडलगारसस्सिरीयं सारयनवकमलकुमुदकुवलयविमलदलनिकरसरिसनिभानयणं वयणं पिवासागयाएसद्धा मे पेच्छिउँ जे अवलोएहिता इओ ममं णाह जा ते पेच्छामि वयणकमलं ॥७॥ एवं सप्पणयसरलमहुरातिं पुणो २ कलुणाई वयणातिं जपमाणी सा पावा मग्गओ समण्णेइ पावहियया ॥८॥ तते णं से जिणरक्खिए चलमणे तेणेव भूसणरवेणं कण्णसुहमणोहरेणं तेहि य सप्पणयसरलमहरभणिएहिं संजायविउणराए रयणदीवस्स देवयाए तीसे सुंदरथणजहणवयणकरचरणनयणलावन्नरूवजोवणसिरिं च दिवं सरभसउवगूहियाई जातिं विब्बोयविलसियाणिय विहसियसकडक्खदिहिनिस्ससियमलियउवल लियठियगमणपणयखिज्जियपासादियाणि य सरमाणे रागमोहियमई अवसे कम्मवसगए अवयक्खति मग्गतो सविलियं, तते णं जिणरक्खियं समुप्पन्नकलुणभावं मच्चुगलथणोलियमई अवयक्वंतं तहेव जक्खे य संलए
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