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सूत्रकृताङ्गे २श्रुतस्कन्धे शीलाकीयावृत्तिः
१ पुण्डरीकाध्य भिक्षुःपश्चमः वैराग्यखरूपं
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याइयह अणिटुं जाव णो सुह, ताऽहं दुक्खामि वा सोयामि वा जाव परितप्पामि वा, इमाओ मे अन्नयरातो दुक्खातो रोयातंकाओ परिमोएह अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्धपुत्वं भवइ, तेसिं वावि भयंताराणं मम णाययाणं अन्नयरे दुक्खे रोयातंके समुपजेजा अणिढे जाव णो सुहे, से हंता अहमेतेसिं भयंताराणं णाययाणं इमं अन्नयरं दुक्खं रोयातंक परियाइयामि अणिटुं जाव णो सुहे, मा मे दुक्खंतु वा जाव मा मे परितप्पंतु वा, इमाओ णं अण्णयराओ दुक्खातो रोयातंकाओ परिमोएमि अणिट्ठाओ जाव णो सुहाओ, एवमेव णो लद्धपुष्वं भवइ, अन्नस्स दुक्खं अन्नो न परियाइयति अन्नेण कडं अन्नो नो पडिसंवेदेति पत्तेयं जायति पत्तेयं मरइ पत्तेयं चयइ पत्तेयं उबवजइ पत्तेयं झंझा पत्तेयं सन्ना पत्तेयं मन्ना एवं विन्नू वेदणा, इह (इ) खलु णातिसंजोगा णो ताणाए वा णो सरणाए वा, पुरिसे वा एगता पुदि णातिसंजोए विप्पजहति, णातिसंजोगा वा एगता पुर्वि पुरिसं-विप्पजहंति, अन्ने खलु णातिसंजोगा अन्नो अहमंसि, से किमंग पुण वयं अन्नमन्नेहिं णातिसंजोगेहिं मुच्छामो ?, इति संखाए णं वयं णातिसंजोगं विप्पजहिस्सामो । से मेहावी जाणेज्जा बहिरंगमेयं, इणमेव उवणीयतरागं, तंजहाहत्था मे पाया मे बाहा मे ऊरू मे उदरं मे सीसं मे सील मे आऊ मे बलं मे वणो मे तया मे छाया मे सोयं मे चक्खू मे घाणं मे जिब्भा मे फासा मे ममाइज्जइ, वयाउ पडिजूरइ, तंजहा-आउओ बलाओ वण्णाओ तयाओ छायाओ सोयाओ जाव फासाओ सुसंधितो संधी विसंधीभवइ, वलियतरंगे गाए
॥२९१॥
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