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________________ सूत्रकृताङ्गे २ श्रुतस्क न्धे शीलाङ्कीयावृत्तिः ॥२८४॥ स्त्रीकामेषु मूर्च्छिता इत्येवं पूर्ववज्ज्ञेयं यावत्तदन्तरे कामभोगेषु विषण्णा ऐहिकामुष्मिको भय कार्य भ्रष्टा नात्मत्रा (नत्रा ) णाय नापि परेषामिति । भवत्येवं द्वितीयः पुरुषजातः पञ्चमहाभूताभ्युपगमिको व्याख्यात इति ॥ साम्प्रतमीश्वरकारणिकमधिकृत्याहअहावरे तचे पुरिसजाए ईसरकारणिए इति आहिज्जइ, इह खलु पादीणं वा ६ संतेगतिया मणुस्सा भवंति अणुपुत्रेण लोयं उववन्ना, तं०-आरिया वेगे जाव तेसिं च णं महंते एगे राया भवइ जाव सेणावइपुत्ता, तेसिं चणं एगतीए सड्डी भवइ, कामं तं समणा य माहणा य पहारिंसु गमणाए जाव जहा मए एस धम्मे सुअक्खाए सुपन्नत्ते भवइ ॥ इह खलु धम्मा पुरिसादिया पुरिसोत्तरिया पुरिसप्पणीया पुरिससंभूया पुरिसपज्योतिता पुरिसअभिसमण्णागया पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति, से जहाणामए गंडे सिया सरीरे जाए सरीरे संबुडे सरीरे अभिसमण्णागए सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मा पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामए अरई सिया सरीरे जाया सरीरे संबुड्डा सरीरे अभिसमण्णागया सरीरमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिट्ठति । से जहाणामएवम्मिए सिया पुढविजाए पुढविसंबुड्ढे पुढविअभिसमण्णागर पुढविमेव अभिभूय चिट्ठह एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिद्वंति । से जहाणामए रुक्खे सिया पुढविजाए पुढविसंबुडे पुढविअभिसमण्णागए पुढविमेव अभिभूय चिट्ठति, एवमेव धम्मावि पुरिसादिया जाव पुरिसमेव अभिभूय चिति । से जहाणामए पुकखरिणी सिया पुढविजाया जाव पुढविमेव अभिभूय चिट्ठ Jain Education International For Personal & Private Use Only १ पुण्डरी काध्य० ईश्वरकार णिकः ॥२८४ ॥ www.jainelibrary.org
SR No.600218
Book TitleSutrakritangasutram
Original Sutra AuthorShilankacharya
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1917
Total Pages856
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size16 MB
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