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________________ | पौण्डरीकस्य निक्षेपं प्रदर्श्याधुनेह येनाधिकारस्तमाविर्भावयन्नाह - ' अत्र' पुनर्दृष्टान्तप्रस्तावे 'अधिकारी' व्यापार: सचित्ततिर्यग्यो| निकै केन्द्रियवनस्पतिकायद्रव्यपौण्डरीकेण जलरुहेण, यदिवा औदयिकभाववर्तिना वनस्पतिकायपौण्डरीकेण सितशतपत्रेण, तथा भावे 'श्रमणेन च' सम्यग्दर्शनचारित्रविनयाध्यात्मवर्तिना सत्साधुनाऽस्मिन्नध्ययने पौण्डरीकाख्येऽधिकार इति । गता निक्षेपनि युक्तिः, अधुना सूत्रस्पर्शिकनिर्युक्तेरवसरः, सा च सूत्रे सति भवति, सूत्रं च सूत्रानुगमे, स चावसरप्राप्तोऽतोऽस्खलितादिगुणोपेतं सूत्रमुच्चारयितव्यं तचेदं सुयं मे आउसंतेण भगवया एवमक्खायं - इह खलु पोंडरीए णामज्झयणे, तस्स णं अयमट्ठे पण्णत्ते से जहाणामए पुक्खरिणी सिया बहुउद्गा बहुसेया बहुपुक्खला लद्धट्ठा पुंडरिकिणी पासादिया दरिस - णिया अभिरुवा पडिरूवा, तीसे णं पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया बुइया, अणुपुच्छुट्टिया ऊसिया रुइला वण्णमंता गंधमंता रसमंता फासमंता पासादिया दरिसणिया अभिरूवा पडिरुवा, तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एगे महं पउमवरपोंडरीए बुइए, अणुपुव्वुहिए उस्सिते रुइले वन्नमंते गंधमंते रसमंते फासमंते पासादीए जाव पडिरूवे । सव्वावंति च णं तीसे पुक्खरिणीए तत्थ तत्थ देसे देसे तहिं तहिं बहवे पउमवरपोंडरीया वुझ्या अणुपुव्वुट्ठिया ऊसिया रुइला जाव पडिवा, सव्वावति च णं तीसे णं पुक्खरिणीए बहुमज्झदेसभाए एवं महं परमवरपोंडरीए बुहए अणुपुव्वुट्ठिए जाव पडिरूवे ॥ १ ॥ अह पुरिसे पुरित्थिमाओ दिसाओ आगम्म तं पुंक्खरिणीं तीसे Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600218
Book TitleSutrakritangasutram
Original Sutra AuthorShilankacharya
Author
PublisherAgamoday Samiti
Publication Year1917
Total Pages856
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_sutrakritang
File Size16 MB
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