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मूत्रांक. मूत्र नाम पत्रांक १३० पाक्षिकादि अतिचार १२५ १३१ पख्खी मूत्र १३३ १३२ पाक्षिकादि खामणे १६८ १३३ धम्मो मंगल दशका
निवेदनलिक अध्ययन तीन १७१
पाठक गण! संशोधनकी १३४ ढंढणरिपि सज्झाय १७७ | सावधानि रखते हुएभी इस पुस्त
१३५ स्वार्थ सज्झाय १७७ कमें भूलसे जो कोइ अशुद्धता ॐ१३६ सज्झाय निक्षेप विधि १७७/ रह गइ हो उसको सुधारके पढ़ें,
१३७ चैत्री काउस्सग्ग १७८| क्योंकि भूल होना छद्मस्थका १३८ सज्झाय उत्क्षेप विधि १७८| स्वभाव है, इत्यलं १३९ लोच करने कगनेका
विधि १७९ श्रीवीर जिन स्तुति तथा श्री जिनदत्त मरिजी नमस्कार १८ ।
श्रीवीर स्तवन नारे वीर ! नहीं मान रे, नहीं मानुं नहीं मानु रे। नहीं मानुं तारूं अकल्याण, प्रभु गर्भकल्याण प्रमाण शनारे वीर ! नहीं मानुं रे किम मार्नु किम मार्नु रे, प्रभु अकल्याणक भूत । जे गर्भापहार तात!, नारे०१२। आषाढि मुदि छठी दिने रे, आव्या देवानंदा कूख रे। ते दिन गर्भाधाने कल्याण श्रेय, ए पंचाशक साख, नारे।। आसोज वदि तेरस दिने रे, गर्भधारण त्रिशला कूरख रे। इंद्रे श्रेय कल्याण माता ए, मान्युं कल्पमूत्र मूल साख, नारे वीर! ।४। जन्म दीक्षा केवल मोक्ष थयु रे, कल्याण श्रेय छ ए जाण रे। अकल्याण गंध मने नहीं रे. जिनचंद्र वीर वखाण, नारे वीर०।।
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