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पालताहुआ, उसा, धर्मकी, केवलीने परूपे हुए, अभ्युत्थित(तयार)हुआहूं,आराधनाकेवास्ते, विरता(रुका)हूं, विराधनासे, असंजमकुं, पालंतो, तस्स,धम्मस्स, केवलिपन्नत्तस्स,आभुठिओमि,आराहणाए, विरओमि, विराहणाए, असंजमं, में सवतरहजाणताहूं,संजमकुं,अंगीकार करताहूं,अब्रह्म(कुशील)कुं, सबतरहजाणताहूं,ब्रह्म(शील)कुं, अंगीकार करताहूं,अकल्प कुंसवतरह
परियाणामि,संजर्म,नवसंपज्जामि, अभं, परियाणामि, बंभं, नवसंपज्जामि,अकप्पं,परिया. जाणताहूं,कल्पकुं,अंगीकार करताहूं, अज्ञान कुं,सबतरहजाणताहूं, ज्ञानकुं,अंगीकार करताहूं, अक्रिया कुं,सबतरहजाणताहूं, क्रिया कुं, मणामि,कप्पं,नवसंपज्जामि, अन्नाणं,परियाणामि, नाणं,नवसंपज्जामि,अकिरियं,परियाणामि, किरियं,
अंगीकार करताहूं, मिथ्यात्वकुं, सबतरहजाणताहूं,सम्यक्त्वकुं,अंगीकार करताहूं, अबोधि कुं,सबतर हजाणताहूं,बोधि कुं,अंगीकारकरताहूँ, नवसंपज्जामि.मिच्छत्तं, परियाणामि,सम्मत्तं.नवसंपज्जामि,अबोहि,परियाणामि,बोहिं,उवसंपज्जामि, # अमार्ग कुं,सवतरहजाणताहूं,मार्गी कुं, अंगीकारकरताहूं, जो, मेरेकुं याद है, जो,फेर,नहीं,यादआताहै, जो, पडिक्कपताहूं,जो,फेर, १ नहीं है
अमग्गं,परियाणामि, मग्गं,उवसंपज्जामि, जं.संभरामि,जं,च, न,संभरामि,जं,पडिक्कमामि,जं.च, न,
॥४७॥
१ निग्रंथ प्रवनमें बताये। २ जागनेकी बुद्धिसे जाणके त्याग बुद्धिसे त्यागताह, ऐसा सर्वत्र समझना। ३ अनाचार । ४ मिथ्याज्ञान । ५ नास्तिकवाद । ६ सम्यग्रवाद। मिथ्यात्वके कार्य। ८ सम्यक्त्त्वके कार्य । ९ मिथ्यात्व कषायादि। १० सम्यग्दर्शनादि । ११ उपयोगादिसे जाणा हुआ दोष । १२ अजाणमें रहे हुए सूक्ष्म दोष ।।
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