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________________ है सव्व दवेसु', खित्तओणं मुसावाए लोए (लो में) वा अलोए (अलोकमें) वा, कालओणं मुसावाए दिआ वा राओ वा, भावओणं मुसावाए रागेण वा दोसेण वा जंपि य मए इमस्स धम्मरस केवलि पन्नत्तस्स अहिंसा लख्खणस्त सच्चाहिछियस्स विणयमलस्स खंतिप्पहाणस्स अहिरण्णसोवण्णिअस्स नवसमप्पभवस्स नवबंभचेरगुत्तस्स अपयमाणस्स भिख्खावित्तिअस्स कुख्खीसंबलस्स निरग्गिसरणस्स संपख्वालिअस्स चत्तदोसस्स गुणग्गाहियस्सनिबियारस्स निबित्तिलख्खणस्त पंचमहव्ययजुत्तस्स असंनिहिसंचयस्स अविसंवाइयस्स संसारपारगामियस्स निव्वाणगमणपज्जवसाणफलस्स पुट् िअण्णाणयाए अलवणयाए अबोहियाए अणऽभिगमेणं अभिगमेण वा पमाएणं राग दोस पडिबढयाए बालयाए मोहयाए मंदयाए किड्डयाए तिगारवगरुयाए चनकसाओवगएणं पंचिंदिओवसऽट्टेणं पडिपुन्नभारियाए सायासोख्वमणुपालयंतेणं इहं वा भवे अन्नेसु sheroin जनजफफफफफफजपा १ द्रव्योंने, धर्मास्तिकाय-अधर्मास्तिकाय आदि छ द्रव्योकी विरुद्ध प्ररूपणा करनी। रागग-माया और लोभ नागके भेद होनेसे गोचरि आदि काम-काजमें आलसके कारण न म कहेकि 'मेरा पग दुखता है या बिमार न हो तोभी मैं बिमार हैं' इत्यादि बोलना मायासे झंट है। अच्छे आरके वास्ते लखे सूखे शुद्ध आहारको अशुद्ध बताना लोभसे झूट ILE है । ३ द्वेषसे-क्रोध और मान द्वेषके भेद वास्ते पीस करके किसीको हलके वचन कहना क्रोधमे झूट हैं। खुद विद्वान महोतभी में विद्वान ह' इत्यादि कहना मानस झुट है। For Personal 8. Pre Use Only Jain Education International www.jainelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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