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________________ 卐 Y गुप्ति २, काय गुप्ति ३, ए पांच समिति त्रण गुप्ति. अष्ट प्रवचन माता रूडिपरे पाली नहीं, साधुतणे धर्मे सदैव, श्रावक तणे धर्मे सामायिक पोसह लीधे जे कोइ खंडन विराधना कीधी होय, चारित्राचार विषइओ ० ४ | विशेषत चारित्राचारे तपोधन' तणे धर्मे - वयछक्कं कायछक्क, अकप्पो गिहि भायणं । पलिअंकनिसिजाए, सिणाणं सोभ वजणं |१| व्रतषट्के-पहिले महाव्रते प्राणातिपात सूक्ष्म. बादर. स. थावर जीवतणी विराधना हुइ । बीजे महाव्रते क्रोध. लोभ. भय. हास्य लगे झुठो बोल्यो । तीजे अदत्तादान विरमण महाव्रते - सामि.जीवादत्तं, तित्थयर अदत्तं तव य गुरुहिं । एवमदत्तं चहा, पन्नत्तं वीएहिं |१| स्वामी अदत्त. जीव अदत्त. तीर्थंकर अदत्त. "गुरुअदत्त. ए चतुर्विध अदत्तादानमांहिं जे कोइ अदत्त परिभोगव्यो होय । चौथे महाव्रते - वसही कह निसि जिंदिय', कुड्डिंतर पुव्व १ तपस्यारूप धनवाले साधु । २ तृण आदि चीज उसके स्वामीने नहीं दी हुइ लेना । ३ वस्तुके स्वामीने देने परभी वस्तुमे रहे जीवकी रजा विना लेना जैसे सचित्त वस्तुको बहर लेना । ४ तीर्थंकरोंने निषेधा हुआ आधाकर्मी आदि लेना । ५ स्वामीने दी हुइ दोष रहित चीजको गुरुकी रजा विना वापरना । ६ वसति (उपासरेके आसपास देखने में आवे वैसी जगहमें खी-पशु नपुंसकोंका रहवास न होना चहिये) । ७ कथा (एकली स्त्रियोंके आगे व्याख्यानादि करना या स्त्रीयोंके रूपशृंगारादिकी कथा करना आदि न करे) । ८ निषद्या (खीके साथ एक आसन पर बैठना न करे, वीके ऊठजाने परभी दो घडीतक उस जगह पर न बैठे ) । ९ इंद्रिय (स्त्रीयोंके अंगोपांगोंकी तरफ एका दृष्टिसे न देखना) । १० कुड्यांतर (जहां बीच में भींतही हो, भीतके पीछे सूते हुए बी पुरुषके मैथुन आदिके शब्द सुनने में आये, वहां न रहना) 1 Jain Education International For Personal & Private Use Only 6969696 |||१२८|७ www.jainelibrary.org
SR No.600211
Book TitlePanch Pratikraman Sutra
Original Sutra AuthorSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha Surat
Author
PublisherSiddhachal Kalyan Bhuvan tatha SUrat Nava Upasarana Aradhak
Publication Year1933
Total Pages192
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size18 MB
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