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पाक्षिका दि अतिचार
(साधुके)
१.३०
'नाणंमि दंसणंमि य, चरणंमि तवंमि तहय विरियंमि । आयरणं आयारो, इअ एसो पंचहा भणिओ |१| ज्ञानाचार १, दर्शनाचार २, चारित्राचार ३, तपाचार ४, वीर्याचार ५, ए पंचविध आचारमांहि अनेरो जे कोइ अतिचार पक्ष ( चोमासी - संवच्छरी) दिवसमांहि सूक्ष्म बादर जाणतां अजाणता हुआ होय ते सवि हु मन वचन कायाए करी मिच्छामि दुक्कडं |१|
तत्र ज्ञानाचारे आठ अतिचार - काले विणए बहुमाणे, नवहाणे तह अनिन्हवणे । वंजणअत्थ तदुभए, अठ्ठविहो नाणमायारो | १| ज्ञान कालवेलामांहि पढ्यो गुण्यो परावर्त्यो नहीं, अकाले पढ्यो, विनय हीन बहुमान हीन योगोपधान हीन अनेरा कन्हे पढ्यो अनेरो गुरु कह्यो, देव वंदण वांदणे पडिक्कमणे सज्झाय करतां पढतां गुणतां कूडो अक्षर कह्यो, काने मात्राए आगलो ओछो भयो
१ इस गाथा में साधुके ज्ञानाचारादि पांचों आचारोंके नाम बतायेंहै । इसके आगे दूसरे तीसरे अतिचार में ज्ञानाचार दर्शनाचारके ८-८ आचारोंके नामवाली १-१ गाथा रखके उसका अर्थ भाषा में वर्णवा है, चोथेने १ गावासे चारित्राचारका सामान्य वर्णन है, बाद पांचवें छठे तथा सातवेंमें चारित्राचारकाही विशेष वर्णन है, आठवेंमें तपाचार और वीर्याचारका भेलाही वर्णन करके नवमेमें चरण सित्तरि करण सितरिके १४० अतिचारोंका मिच्छामि दुकडं दिया गया है। कठिन शब्दोंके अर्थ नीचे फुटनोट में लिख दिये हैं। २ जिस जिस सूत्र के पढनेका जो जो काल बताया है उसमें । ३ ज्ञानवान्की आज्ञा न मानना तथा पुस्तकादिकी आशातना करना आदि । ४ ज्ञानवान्के उपर अप्रसन्न मन रखना ।
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5॥१२५॥
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