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Fजो , पढता है, जो, और, पूरासुनताहै। उभय(दोन),काल(वख्त),ही, अजित शांति स्तवकुं। नहीं, निश्चय, होते हैं, उसको रोग । में जो,पढइ, जो, अ, निसुणइ। नभओ, 'कालं, पि, अजिअसंतिथयं ॥'न, हु. हुंति, तस्स,रोगा।
पहेलेउपनेभो, नष्ट होतेहैं ।३१। यदि(जो), इच्छतेहो ?,परमपद(मोक्ष)कुं। अथवा, कीर्तिकु. अतिविस्तारवाली, लोकमें। तो, पुषुप्पन्नावि.नासंति॥३९॥ 'जइ, 'इच्छह ?. 'परमपयं। अहवा, किर्ति, सुविथडं. भुवणे ॥'ता, तीनलोकको,उद्धरनेवाले । जिनवरके,वचनमें, आदर. करो ।४०३ | जैनमें श्रा० वद १से३१मा मास अधिक हो, ६१ मि ६२ मिक
तेल्लुक्कु. दरणे। जिण,वयणे,आयरं,कुणह।४०॥ तिथि भेली हो,वषे नहि,परंतु पैप्णव पंचांगसे तिथि मंतव्य यह है। पाक्षि- क्षये पूर्वा तिथिः कार्या, तृदो पूर्वा तथोत्त।। श्री महावीर निर्वाणे, भव्यैः लोकानुगैरिह ॥२॥ काद अर्थ-श्री महावीर निर्वाणकी कार्तिक अमावस तिथि क्षय हो तो पूर्वा तिथि चौदस,द्धि होय तो पहिली अमावस तथा दूसरी अमावस करे । तय भवइ जहिं तिहि हाणी,पुवतिही विडिया य सा कीरइ। पक्खी न तेरसिए,कुजा सा पुण्णमासीए।
+ अर्थ-तिथिकी हानि हो तो पूर्व तिथिको धर्म नियमादि करे,पाक्षिकप्रतिक्रमण तेरसको न करे, किंतु पुनम अमावसको करे ॥२॥
तिहि पडण पुवतिही.कायव्वा जुत्ताधम्मकज्जेस।चाउहसी विलोवे.पुण्णिमियं पक्खी पडिक्कमण ।३। + अर्थ-तिथि क्षय हो तो तिथिमें धर्मकृत्य करे, चौदस क्षय हो तो पूनम अमावसमें पाक्षिक प्रतिक्रमग करना युक्त हैx ॥३॥
x अमावस पूननका क्षय वृद्धि हो तो उदय चउदसको वा उसउदय उदस पर्व तीयीको दूसरी तेरस कहके पाक्षिक प्रतिक्रमण पौषधादि धर्मकृत्य निषेधने युक्त नहीं है।
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