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________________ अध्यात्म विचार उनके उद्धार हानेके लिये कोशीस होनेकी जरूरत समान समझके रागद्वेषका त्याग करके अपना कल्याण करके अपनी आत्माको मलीन करना नही चाहिये यही धर्मकी सारंस है. दोहा - धर्मधर्म सबही कहै । विरला जाणे कोय ॥ सत्यासत्य जाणे नही । धर्म कहांसे हाय ॥ १ ॥ कोशीस यही है कि सर्व जीवोंको अपनी आत्माके करना चाहिये लेकिन खाली एक दुजेकी निंदा अथ परमात्मासे प्रार्थना - हे प्रभो यह शरीर धन स्त्री पुत्र कुटुम्ब परिवार आदि सर्व पदार्थों मेरेमें भिन्नरूप | होनेपर भी मैं मेरा तन मनसे मानता हूं इसलिये मुझे धिक्कार हो हे जगत्सल! जिस दिन उपरोक्त कुटुम्ब परिवा | रका मोह छोडके महा पुरुषके पन्थे चलूंगा वो दिन धन्य मानुंगा हे जगद्वन्धु मैं मेरा निज सुख छोडके केवल पु| लीक इंद्रियसुख और परिवारके लिये सदैव नानाप्रकारसे पापारंभ कररहा हूं इसलिये मुझे पुनः पुनः धिक्कार हो जिस दिन मैं सब तरह के पापारंभको छोड़के आत्मकल्याण करूंगा वह दिन धन्य मानुंगा हे कृपासिंधु जिसदिन मैं कदाग्रह वाडाबंधी धर्मकात्याग करके महा पुरुषके पन्थे चलूंगा वो अपूर्व दिन मुझे कय प्राप्त होगा हे स्वामीनाथ चेलाचेली पुस्तकआदिका मोह छोडके गिरिकंदराके विषे निर्भय होकर ध्यान समाधि लगाकर आत्म अनुभवरूपी रसका पान करूंगा वोदिन मुझे कब प्राप्त होगा हे प्रभो सत्य प्रिय और सब जगत् हितार्थी शुद्ध निवेद्य वचन बोलेनेका उपयोग मुझे कब प्रप्त होगा मैं सदैव विना विचारसें और आत्मउपयोग सुनतामेही बोलना इसलिये मुझे विक्कर है हे जगद्वत्सल शक्ति होते भी मैंने सुपात्रको दान नहीं दीये तसंही सेवा भक्ति और तर नहि किये, For Personal & Private Use Only Jain Education International जीतसंग्रह jainelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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