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________________ चाहिये फेर समकितगुणको नाश करनेवाले पाञ्चकारण है उनकामी त्याग करना चाहिये. अध्यात्म- दोहा-ज्ञानगर्वमतिमंदता । निठुरवचनउद्गार ॥ रूद्रभाव आलस दशा । नाशे पंचप्रकार ॥१॥ जीतसंग्रह विचार ३ भावार्थ:-ज्ञानपढनेका गर्व अभिमान तत्वज्ञान में अरुची सचिनही और असत्यता निर्दयता सावध कटुक बचन बोलने में प्रवीण और सदा क्रोधादि परिणाम उत्तम अध्यात्म ज्ञान सुननेकेलिये तथा देशव्रती सर्वव्रती चारित्र धर्म पालने में निरुद्यमी आलम प्रमादी यह पांचोही दूषण ममकित दर्शनको नाश करनेवाले दोषोंसे अवश्यही बचना चाहिये ॥२॥ तैसेंही सम्यकदर्शनके पांचअतिचारसभी बचना चाहिये. ____ गाथा-लोगहास्यभयभोगाचि । अग्रशोचस्थितिमेव ।। मिथ्याआगमकीभक्ति । मृषादर्शनीसेव ॥१॥ भावार्थः-मनमें ऐसी शंका आनी कभी मैं शुद्धदेव शुद्धगुरु और धर्मके सिवाय दूसरे देवगुरु धर्मकों JE नही मानुगा नो लोकोमें मेरी हांसी होगी और जो धर्म है वह सत्य है कि अन्यधर्म सत्य हैं तथा पांचो 18 इन्द्रियोंके भोगविलासकी रुचि होनी मेंही तत्वज्ञानमें शंका करनी और कहानी कथाओमें रुचिहोनी | तथा मिथ्यात्वी देवगुरु धर्म हैं वह सत्य है अन्यधर्मकी प्रशंसा करनी तथा कुगुरुकी सेवाभक्ति करनी इस २८ पांच दृषणकों सम्यग्धारी जीवको अवश्यही त्याग करनाही चाहिये और जो आत्मधरममें सदा भिन्न पदा-1 SEौँको अपना मान कर क्रोध मान माया और लोभ करके ममत्वभाव रखना है यह अनंतानुबंधी कषायों हैं जिसमें लिप्त हुआ यहजीव अनादिकालसें चतुर्गतिके विषे परिभ्रमण कर रहा हैं मिथ्यात्व मोहनीके في الفعاليات العليا لبنان ليا ليختالل الفلانطلاللانتا in Education n ational For Personal & Private Use Only www.ncbora
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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