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pal॥३॥ एमजाणी भविपाणीया चेतोचतुरसुजाणरे । एवो अवसरनामिले भाखेकेवलनाणीरे ॥४॥ सूक्ष्मबोधअध्यात्म- विनभव्यने न होवेतत्वपरतिच॥ तत्वालम्बनज्ञानबिन टलै न भवभयभीत ॥ ५॥ भावार्थ:-कोटानकोटिग्रन्थोंके विचार | पढने परभी जो सूक्ष्म आत्मतत्वज्ञानकी प्राप्ति नहीं होवे अर्थात् जबतक आत्मज्ञानका बोधनहीं होवे तबतक
जीतसंग्रह सत्यासत्य धर्मकी परतीत नही होशके क्योंकि तत्वावलम्बन ज्ञानविना भवभयकीभीति दूर नही होवे ५ श्रुत| ज्ञानने भाजै मननो शंसय गाथा-अलखअगोचर अनुपम अर्थनो कुणकहिजाणेरेभेद सहजविसुधारेरेअनुभवविणजे शास्त्रते सघलारेखेद ॥१॥ तत्वतेआत्मस्वरूप है शुद्धधमपणएह परभावागतचेतना कर्मग्रहछे येह ॥२॥ भावार्थ:-आत्मस्वरुपकी पहिचान करके जा स्वरूपमें रहनाहै वही आत्मतत्वहै और वही आत्म धर्म, परंतु स्वसभावकों छांडके परभावमे रक्त रहनेपर यही आत्मा कर्मकों ग्रहण करके स्वतःही व्यवहार नयसें बंधीजरहा २ गाथा-आत्मज्ञानविन जे जे कथा बोतीबालकचाल बाललीला धूलीसमो जागोयबाचाल ॥३॥ | भावार्थ:-आत्मज्ञानविना केवल जो क्रिया हैं वह बाललीलाके समानही है अर्थात् आत्मज्ञानरहित जो जो कथा कीर्तन, वहतो केवल लोकरंजनके लिये बाललीला धूलीके समान हैं ॥ ३ ॥ गाथा-रंगरागनेकानीकथनि । २६ | कहैनहीसंयुता ॥ उपदेशी वैराग्यअनुभवी । अदभुततेअबधूता ॥४॥ सर्वसूत्रसिद्धान्तोंके पठन पाठनका सार यही हैं कि आत्माके सत्यस्वरूपकी पहिचानके लियेही, इसलीये जो अध्यात्मज्ञानहै वह आत्मस्वरूपकों प्रगटकरके देखलाताहै इसलिये आत्मकल्याणके लिये उत्तमसे उत्तम साधन अध्यात्मज्ञान सर्वज्ञने कहा, मोक्षसुखके।
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