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________________ जीतसंग्रह अध्यात्मविचार शुद्धक्रिया बिन जीवडा । लहे न भवनो छेह ।। अशुद्ध क्रिया कर बापडा। डुवे भवजल तेह ॥१२॥ गाथा-नाणगुणेहिविहीणा । क्रियासंसार बहिणीभणिया ॥ धम्मरुएहवम्मिता नाणसमेंयादुजा ॥१॥ भावार्थजबतक आत्मज्ञानकी प्राप्ति नहीं होवे तबतक सर्वतरहकी क्रियाकाण्ड संसारकी वृद्धिके लियेहीहै क्योंकि शुद्धात्म स्वरूपको पहिचान बिना कर्म नाश नहि होते इसलिये सदैव निश्चय दृष्टि हृदयमें रखके शुद्धव्यवहारका पालन करना चाहिये ॥१॥ गाथा-निश्चयदृष्ठि हृदय धरीजी । जे पालैव्यवहार ॥ पुण्यवत ते पामसेजी । भवसागरनो पार ॥२॥ नित्थयमग्गो मुख्खो । व्यवहारो पुण्यकारणोवुत्तो ।। पढमोसम्बररुवो। आसवहेउतओबीयो ॥२॥ भावार्थ-शुद्ध निश्चय नयसें स्वस्वभावमें रहनेपरही मोक्ष है और जो व्यवहार है वह पुण्यका कारण है तैसेंही स्वआत्मस्वरूपमें रहनेपर संवर है और परस्वभावे वंह है गाथा-स्वपरविकल्पवासना होतअविद्यारूप तातेबहुरिबिकल्पमय भरमा जालअन्धकूप ॥१॥ वस्तुतत्त्वेरम्याते निग्रंथ तत्वअभ्यास तेहां साधुपन्थ तेणे गीतार्थचरणे रहिजे सुद्धसिद्धान्तरस्तोलहीजे ॥२॥ दोहा-स्यादवादगुण जे रम्या । रमतां निजगुणसंग ॥ साधुशुद्धते आत्मा । बीजा सहु द्रव्यलिंग ॥१॥ ढाल-मुनिवरतपसीअणगार । साधेपश्चमगतिदयाल ॥ विरमीसकल उपाधी भविय-णवन्दोरे मुनिपदजगजयकार ॥१॥ दोहा-नवविध भावलोचजबहोवे । तबदशमोकेशलोचजोवे ॥ यहीजिननी आज्ञा है। कोईकपालैमुनितेह ॥१॥ ज्ञानविनाछूटैनही । भवजलभयनीभीत ॥अज्ञानीजानै नही । कैसेंलहेसुखमीत॥२॥ मिटै मिथ्यावासना । तब लहैसमकितसुद्ध अज्ञानीजानै नही कैसेंलहैसुखबुद्ध ॥३॥ ढाल-दर्शनविन क्रिया नही लेखे । विन्दविणजेम in Education For Personal & Private Use Only K riainelibrary.org
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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