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________________ अध्यात्मविचार जीतसंग्रह ॥ १०॥ हुँसीयार होने परभी मोक्षकी इच्छा रखतेहै वह एक अच्छेराभूतही हैं कितनेक विचारे आत्मभाइयों मनकल्पित पंथ निकालके मानबडाई पूजा प्रतिष्ठामें गुलतान रहतेहै नहींतो कोई गुरुकी खबरहै नही कोई चेलाकी खबरहै अपने आपही पत्थरविजय लकडविजय गुलाबसुन्दर ज्ञानसुन्दर आदि कल्पितनाम अपने मनसें रखके मेरे जैसे धूतारे भोलीजनताको ठगतेहुये फिरतेहै बनियोंको तीनकोडीकाभी ज्ञान नही होता दृष्टिरागी बनिये कुछनहिदेखशते | मु०-विज्ञायपरमंज्योति-र्माहात्म्य मिदमुत्तमम् ॥ यःस्थैर्ययातिलभते । सयशोविजयश्रियम् ॥३३॥ (इदंपरमज्योतिर्माहात्म्यं) यही उत्तमसेंउत्तम और उत्कृष्ट आत्मज्योतिके माहात्म्यकों (विज्ञाय) जाननेवाला [यः] जोपुरुष [स्थैर्ययाति आत्मस्वरूपके विसे स्थिरीभूत रहते है महापुरुष (सः) वही [यशः] जस और (विजयश्रियं) विजयरूपी लक्ष्मीकों [लभते प्राप्त होते हैं ॥३३॥ दोहा-बाहेरभटकेजीवडा करेनघटमेंखोज । रत्नत्रयपामेनही लहै न आत्ममोज ॥१॥ अलखअरूपीआत्मा झलकेघटमेंजोत । अज्ञानी जाणे नही केसेंहोवेउद्योत ॥२॥ श्लोक-कुमारीनयथावेति पनिसंभोगसुखम् । न जानाति तथालोको योगिनांयोगजंसुखम् ॥३॥ अर्थात् जैसे कुमारिका अपने पतिके सुखकों नहीं जान शकती तैसें अज्ञानी जीवों योगीराजके समाधिरूपी आंतरीक सुखकों नही जान शकते दोहा-जडमेंआत्मधर्मनही जो मानसोमूढ । जडवस्तुमेंजडपणो यहपरमार्थगुढ ॥१॥ आत्मधर्म अरूपहै नयनहीलागेकोय । चरमनेणकरजोदेखिये सोसहुपुद्गलहोय ॥२॥ जडक्रियानीगहलमें आतमधर्मनहिलेश । | जपतपक्रियाकांडसे छुटैनहीकलेश ॥३॥ गाथा-क्रियामूहमतिजों अज्ञानी चालतचाल अपूठी । जैनदशाउनमेंनही اجالانلامالند Jnin Eitacationailnal For Personal & Private Use Only Ww.janeira
SR No.600209
Book TitleAdhyatmavichar Jeet Sangraha
Original Sutra AuthorJitmuni
Author
PublisherPannibai Upashray Aradhak Bikaner
Publication Year1935
Total Pages122
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size11 MB
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