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उत्तराध्ययन
सूत्रम् १९१९
प्रमादस्थान
नाम द्वात्रिंशमध्ययनम्
तण्हाभिभूअस्स अदत्तहारिणो, सद्दे अतित्तस्स परिग्गहे अ । मायामुसं वड्डइ लोभदोसा, तत्थावि दुक्खा न विमुञ्चई से ।। ४३।। मोसस्स पच्छा य पुरत्थओ अ, पओगकाले अदुही दुरंते ।। एवं अदत्ताणि समाययंतो, सद्दे अतित्तो दुहिओ अणिस्सो ।। ४४।। सद्दाणुरत्तस्स नरस्स एवं, कत्तो सुहं होज कयाइ किंचि । तत्थोवभोगेवि किलेसदुक्खं, निव्वत्तई जस्स कए ण दुक्खं ।। ४५।। एमेव सर्पमि गओ पओसं, उवेइ दुक्खोहपरंपराओ । पदुद्दचित्तो अ चिणाइ कम्मं, जं से पुणो होइ दुहं विवागे ।। ४६।। सद्दे विरत्तो मणुओ विसोगो, एएण दुक्खोहपरंपरेण । न लिप्पई भवमझेवि संतो, जलेण वा पुक्खरिणीपलासं ।। ४७।।२।।
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