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________________ 703+40+ 1.03 **+******++**++++ Jain Education International अध्ययन ९ मुं. ( श्रीवीर प्रभुनो विहार. ) १ भगवाने देवदुष्य वस्त्र फक्त पूर्व तीर्थंकरोनो कल्प जाणीने अंगीकार कर्यु हतुं. २ भगवान गृहस्थो साथे हळवं मळवु छोडीने ध्यानमां निमग्न थह रहेता हता. ३ भगवान सर्व अनुकूल के प्रतिकूल उपसर्ग परीषहोने समभावे सहन करता. ४ भगवान नियमित अशन पान वापरता, रसासक्त न थता, रसनी इच्छा पण न करता भने खरज मटाडवा शरीरने खणता पण नहिः सर्वत्र उदासीन भावे ज भगवान रहेता . ५ विहार करतां आई अवळं जोता नहि, मार्गमां बोलता नहि, एम यतना पाळता थका प्रभु विचरता हता; भगवान् प्रतिबंध रहित विहार करता हता. ६ प्रतिबंध रहित विचरता प्रभु एकांत निर्भय अने निर्दोष स्थानमा रही निर्मळ ध्यान ध्याता हता. ७ दीक्षा लइने निद्रा करता नहि पण पोताने जागृत राखता, कयांक लगारेक सूता तो पण त्यां निद्रा करवानी इच्छा नहि करता. ८ तेश्रो निद्राने कर्मबंधनना हेतुभूत जाणीने जागता रहेता कदाच निद्रा भाववा लागती तो तेश्रो तेने यत्नथी दूर करता हता. For Personal & Private Use Only +******+******+******+* www.jainelibrary.org.
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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