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श्री प्रशमरति प्रकरणम् ॥ ३४ ॥
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विवेचन - प्रथम शस्त्रपरिज्ञा अध्ययनमां पृथ्वी, अप्, तेजस, वायु, वनस्पति अने त्रसरूप षट् जीवनीकायनुं स्वरूप, तेमां शरुआतमां सामान्यतः जीवनुं अस्तित्व प्रतिपादन, पछी पृथिव्यादिक छ कायना स्वरूपनुं व्यावर्णन, तेना वधथी संसारहेतुक कर्मबंध, अने मन वचन कायावडे तेनो वध करवा कराववा तेमज अनुमोदवाना परिहारथी विरति - ए ते षट् जीवनिकायनुं रक्षण करवा माटे ज्ञानपूर्वक प्रयत्न करवा संबंधी उपदेश. बीजा लोकविजय अध्ययनमां लौकिक संतान- मातापिता, स्वजन, संबंधी, स्त्रीपुत्रादिक उपरनी स्नेहासक्तिनो त्याग, तेमज बळवान् क्षमादिक बळवडे क्रोधादिक कषायनो जय. त्रीजा शीतोष्णीय अध्ययनमां क्षुधातृषादिक परिषहोनो विजय ( तेमां स्त्री अने सत्कार परिषद भावथी शीत अने शेष २० भावथी उष्ण जाणवा ). चोथा सम्यक्त्व अध्ययनमां शंकादिक शन्य रहित तत्त्वार्थश्रद्धान लक्षण - निश्चित समकित वर्णवेलुं छे. पांचमा लोकसार अध्ययनमा संसारभ्रमण थकी मारे खेद; केमके हिंसादिकमां प्रवृत्त मुनि कहेवाता नथी, परंतु हिंसादिकमां अनेक दोष जाणी तेथी निवृत्त थयेल, कामभोगथी विरक्त, निष्परिग्रही मुनि कहेवाय छे; वळी ते सन्मार्ग सेवी सारभूत रत्नत्रयीने प्राप्त थाय छे. छठ्ठा धूत अध्ययनमां स्वजन, मित्र, स्त्री, पुत्रादिकनी निरपेक्षता, तेनो त्याग, ज्ञानावरणीयादिक कर्मक्षयनो उपाय, श्रुतज्ञानानुसारे क्रियानुष्ठान तथा शरीर अने उपकरण उपरनी मूर्छानो त्याग वर्णवेल छे. सातमा महापरिज्ञा अध्ययनमां मूळ उत्तर गुणने सारी रीते समजी मंत्र तंत्र तेमज आकाशगामी लब्धिनो प्रयोग न करवो, अने प्रत्याख्यान परिज्ञामां तजवा योग्य तजीने ज्ञान दर्शन तथा चारित्रमां सदा उजमाळ थइ रहेवा उपदिश्युं छे. आठमा विमोचयतना अध्ययनमां तपोविधि प्राधान्यपणे ग्रहण करेल छे; श्रावकोने
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