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________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम् ॥ २८ ॥ Jain Education Inter ****** पण निर्वाण पद (मोक्ष) साधे के एम समजी गुरुमहाराजाए अनुकंपा बुद्धिथी एक जडबुद्धि शिष्यने रागद्वेषनो निग्रह करवाना रहस्यवाळा " मा रुस, मा तुस " ए वे पद आप्यां ते पदने गोखतां तेमने स्मृतिभ्रंश थह जवाथी 'माष तुष' एते ते पदो मुखे चढी गयां, परंतु रागद्वेषना निग्रह तरफ तेनुं सतत् लच होवाथी अने गुरुमहाराजना ए अर्थगर्भित पद उपर पूरतो विश्वास होवाथी ते शिष्यमुनिनी मुक्ति थयेली संभळाय छे. तेथी हुं बहु भण्यो हुं अने तेना अर्थ पण सारी रीते करी जाणुं हुं एवो गर्द राखवो मिथ्या छे. वी को एक अवाळी श्रुत व्याख्या करे छे, कोइ वे अर्थ कही शके के, त्यारे कोइ एकज सूत्रना अनेक अर्थ कहे - कही शके छे. एते आगमना अर्थ संबंधी तारतम्य सांभळी तेमज श्रीस्थूलभद्र महर्षिने अति विस्मयकारी विकरण - विक्रिया थयेली सांभळीने, अर्थात् ज्यारे श्री स्थूलभद्र मुनीश्वरनी व्हेनो यतादिक साध्वित्र श्री गुरुमहाराजने वंदन करी, स्थूलभद्र मुनिने वंदन करवा जती हती, त्यारे पासे भावती पोतानी व्हेनोने चमत्कार बताववा निमित्ते तेम वैक्रिय सिंहरूप निर्माण कर्यु हतुं श्रा हकीकत यचादिकना मुखथी सांभळी श्रुत उपयोग मूकी जोतां गुरुमहाराजने जायुं के स्थूलभद्र मुनि पोते ग्रहण करेलुं ज्ञान जीरवी शक्या नथी, एम निश्चय करी तेमने त्यारपचीनी नवी वाचना आपवामना करी; जेना परिणामे पाछला चार पूर्वना अद्भुत रहस्यथी ते बे-नशीब रह्या अने त्यारपछी थयेला कोइ पण साधु ते रहस्य पामी शक्या ज नहि. श्रा बनेली हकीकत (fact) सांभळीने, तेमज आगमना जाण बहुश्रुत आचायदिको साथै संसर्ग - समागम सेववाथी तेमज अभ्यासवा योग्य शास्त्रार्थ श्रवण करवामां उत्साह - चढता परिणाम राख For Personal & Private Use Only K *3********* ॥ २८ ॥ 1-2-1 jainalibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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