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________________ a भवकोटीभिरसुलभं मानुष्यं प्राप्य कः प्रमादो मे ! न च गतमायुर्भूयः प्रत्येत्यपि देवराजस्य ॥ ६४ ।। आरोग्यायुर्बल समुदयाचला वीर्यमनियतं धर्मे । तल्लब्ध्वा हितकार्ये मयोद्यमः सर्वथा कार्यः ॥ ६५ ॥ भावार्थ-कोटी भवे पण पामयो दुर्लभ एवो मनुष्य भव पामीने मारे आ शो प्रमाद !! गयेली तक (गएलुं आयुष्य) इंद्रने पण पाछी मळती नथी. आरोग्य, आयुष्य, बल अने लक्ष्मी आदि चपळ छ; धर्मने विषे वीर्य उत्साह अस्थायी छे (नियत नथी) माटे ते पार्माने हितकार्यमा म्हारे सर्वथा उद्यम करवो जोइए.६४-६५. विवेचन-नरक, तिर्यंच अने देवता संबंधी अनंत भवो कीधा छतां अति दुर्लभ एवो आ मनुष्य जन्म पामीने मुक्तिनां साधनरूप ज्ञानादिकनुं आराधन करवामां जाणता एवा मने आ शो प्रमाद ? प्रतिक्षण उदय आवी भोगवाइ ने क्षीण थइ जतुं आयुष्य सौधर्माधिपति जे इंद्र तेने पण पाळु श्रावतुं नथी तो पछी मारा जेवा मनुष्यनुं तो कहेवू ज शुं ? आरोग्य (नीरोगीपणुं) अस्थिर छे के मके पूर्वकृत कर्मयोगे नीरोगी पण सनत्कुमार चक्रीनी परे रोगी थइ जाय छे आयुष्य पण अध्यवसायादिक सात प्रकारे तूटी जाय छे तेमज अंजलिगत जळनी जेम क्षणे क्षणे ते ओछु थतुं जाय छः वीर्यान्तराय कर्मना क्षयोपशमथकी प्रगटतुं बळ ( उत्साह ) पण निमित्त पामी मंद पडी जाय छे धनधान्यादिकना भंडार पण क्षणभंगुर छे अने परिषह सहन करवामां जोइतुं वीर्य ( उत्साह ) पण वखते विणसी जाय छे तेथी उक्त सर्व शुभ सामग्री प्रारोग्यादिक ( पूर्व पुण्ययोगे) पामीने ज्ञानादिकर्नु पाराधन करी लेवारूप हितकार्यमां मारे सर्व Jain Education Internat For Personal Private Use Only arma.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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