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श्री प्रशमरति प्रकरणम्
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(आपदा) पामे छे ते नाममात्रथी वर्णववाने पण कोण समर्थ के ? जो के सकळ अनर्थ वर्णवी शकाय एम नथीज, परंतु स्थूलतर केटलाक अनर्थनुं कथन भव्यजनोने हितकर जाणीने ग्रंथकार कहे छे. २४. | क्रोधात्पीतिविनाशं मानाद्विनयोपघातमामोति । शाव्यात्प्रत्ययहानि सर्वगुणविनाशनं लोभात् ॥ २५ ॥
भावार्थ-क्रोधवडे प्रीतिनो विनाश थाय छे, मानथी विनयनो उपघात थाय छे, मायाथी विश्वासनो लोप थाय छे, अने लोभथी सर्व गुणनो विनाश थाय छे. २५.
विवेचन-मोहकर्मोदयजनित क्रोधी स्वभावथी पा लोकमा प्रगट प्रियतम जनो साथे पण प्रीतिनो लोप थाय छ, अने प्रीतिनो नाश थये सते आत्माने बहु असुख प्रगटे छे. 'हुं ज ज्ञानी दाता के शूरवीर छु' इत्यादिक गर्व युक्त श्रा| त्माना परिणामथी विनयनो लोप थाय छे. विनयमूळ धर्म होवाथी देव, गुरु, साधु अने वृद्धोनो यथायोग्य विनय करवो ज जोइए, ते जेनामा गर्व जागे छे ते करी शकतो नथी. शठवृत्ति-माया परिणामथी पोताना उपरथी लोकोनी प्रतीति उठी जाय छे. व्यवहारमार्गमां कपटवृत्तिथी असत्य भाषण योगे 'सत्यवादी, शाहुकार' जेवी पोतानी आवरुने धक्को लागे छे, जेथी कोइ तेना उपर विश्वास करतुं नथी. अने लोभवश थयेलो जीव क्षमा, मार्दव (नम्रता) तथा आर्जव (सरलता) प्रमुख समस्त गुणोनो विनाश करे छे; तेमज समस्त आपदाने स्वयमेव मागी ले छे. २५.
'हवे क्रोधादिक प्रत्येक कषायर्नु पृथक्करण करी समजावे छे.'
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