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________________ प्रशमरति प्रकरणम् ॥८॥ हवे कइ कइ क्रियाओने करतो आत्मा राग द्वेषने वश थाय छे ते वात चार कारिकाओ वडे शास्त्रकार कहे छेरागद्वेषपरिगतो मिथ्यात्वोपहतकलुषया दृष्टया । पञ्चाश्रवमलबहुलातरौद्रतीव्राभिसंधानः ॥२०॥ कार्याकार्यविनिश्चयसंक्लेशविशुद्धिलक्षणैर्मूढः । आहारभयपरिग्रहमैथुनसंज्ञाकलिग्रस्तः ॥२१॥ क्लिष्टाष्टकर्मबन्धनबद्धनिकाचितगुरुर्गतिशतेषु । जन्ममरणैरजस्रं बहुविधपरिवर्तनाभ्रान्तः॥२२॥ दुःखसहस्रनिरन्तरगुरुभाराक्रान्तकर्षितः करुणः। विषयसुखानुगततृषः कषायवक्तव्यतामेति ॥२३॥ भावार्थ-रागद्वेषथी व्याप्त, मिथ्यात्वथी मलीन थयेली कलुषित बुद्धि-दृष्टिवडे पंचाश्रवरूप अतिशय मळने लीधे आरौद्रध्यानना तीव्र परिणामवाळो, कार्याकार्य विनिश्चय अने संक्लेश तथा विशुद्धिना लक्षणोथी मूढ, आहार, भय, | मैथुन अने परिग्रह संज्ञारूप क्कैशथी ग्रस्त, आठ प्रकारना क्लिष्ट कर्मना निकाचित बंधनथी मारे थयेलो, सेंकडो गतिने | विषे जन्म मरणवडे निरंतर बहु प्रकारना परिभ्रमणवडे भमेलो, हजारो गमे अविच्छिन्न दुःखवडे अत्यंत भाराक्रांत थवाथी दुर्बळ, करुणाजनक स्थितिवाळो, अने विषयसुखनी तृषावाळो एवो (दीन दुःखी ) जीव कषायी कहेवाय छे. २०-२३. विवेचन-उपर जेमना पर्याय बताववामां आव्या ते राग अने द्वेषयुक्त अने तत्त्वार्थमां अश्रद्धानरूप अभिगृहीत, अनभिगृहीत अने संदेहात्मक त्रण प्रकारना मिथ्यात्ववडे उपहत होवाथी मलीन बुद्धियोगे पांच इंद्रियो अथवा प्राणातिपातादिक Jain Education For Personal Private Use Only dainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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