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________________ सद्भिर्गुणदोषज्ञैर्दोषानुत्सृज्य गुणलवा ग्राह्याः। सर्वात्मना च सततं प्रशमसुखायैव यतितव्यम् ॥ ३११॥। भावार्थ-समुद्रमांथी घसाइ गएली कोडीनी जेम भक्तिवडे जिनशासनरूप महासागरमांथी उद्धरेली आ धर्मः | आख्यायिकानुं श्रवण करीने गुण दोषना जाण एवा सजन पुरूषोए दोषोने त्यजी गुणांश ग्रहण करवा अने प्रशमरति (प्रशम सुख ) ने माटे सदा सर्वथा प्रयत्न करवो. ३१०-३११ विवेचन-जिनशासन बहुज उदार आशयवाळं अने अनेक अतिशयर्नु निधान होवाथी ते रत्नागर समुद्र समान छे. तेमांथी अल्पमतिवाळा एवा म्हें उद्धरी काढेली जूनी कोडीनी जेवी आ संक्षिप्त धर्मकथा के जे केवळ प्रशमप्रीतिथी अथवा शुद्ध देवगुरूनी भक्तिथी प्रेराइने कहेली छे ते आ निःसार एवी पण प्रशमरति कथारचना श्रवण करीने गुणदोषने सारी रीते समजी-परखी शके एवा संत साधुजनोए तेमांना शब्द छंद अर्थादिक दोषोनी उपेक्षा करीने जे कंह अन्य गुण तेमा रहेलो जणाय तेज ग्रहण करवो. आ वचनथी प्रकरणकार महाशये पोतानी लघुता दर्शावी आ संक्षिप्त पण अति हितकर प्रकरण ग्रंथनुं सारी रीते श्रवण मनन करवा अने एम करीने स्वकर्तव्य करवा संतजनोनुं लक्ष खेंच्यु छ भने साग्रह सूचव्यु के के ते संतजनोए सर्व प्रयत्नवडे सदाय विषयसुखथी विमुख-विरक्त रहीने सहज स्वाधीन प्रशमसुख माटेज यत्न करवो.३१०-११ यच्चासमंजसमिह छन्दःशब्दसमयार्थतोमयामिहितम् । पुत्रापराधवत्तन्मर्षयितव्यं बुद्धः सर्वम् ।। ३१२ ॥ भावार्थ-या ग्रंथमा छंदशास्र, शब्दशास्त्र अने सिद्धान्तथी जे कंह विरूद्ध म्हाराथी कहेवायुं होय ते सर्व पुत्रना अपराधनी पेरे पंडितपुरूषोए माफ करवू घटे छे. ३१२ Jan Education n ational For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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