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________________ अर्थ-पहेले समये दंड, बीजे समये कपाट, त्रीजे समये मंथान करे छे, चोथे समये लोकव्यापी थाय के पांचमे समये अांतरां, छठे समये मंथान, सातमे समये कपाट अने आठमे समये ते दंडने उपसंहरे छे. २७३-२७४ भावार्थ-प्रथम समये दंड करे एटले स्व शरीर प्रमाण जाडो अने लोकान्त सुधी पहोंचे एवडो अर्थात् चौद राजलोक प्रमाण लांबो प्रात्मप्रदेशनो दंड करे एटले लोकान्त सुधी उंचा अने नीचा आत्मप्रदेशोने विस्तारे; बीजे समये तेनो कपाट करे एटले दक्षिण अने उत्तर दिशे लोकान्त सुधी आत्मप्रदेशोने विस्तारे ए रीते जीजा समये तेज कपाटने मन्थान करे एटले पूर्व अने पश्चिम दिशे लोकान्त पर्यन्त स्वप्रदेशोने विस्तारे; एज रीते चोथे समये मन्थानना आंतरा | पूरीने लोकव्यापी थाय. आ प्रमाणे अखंड वीर्यवडे आत्मप्रदेशो अखिल ब्रह्मांड ( संपूर्ण लोक ) मां विस्तारीने ते केवळज्ञानी भगवान् वेदनीयादि त्रण कर्मने आयुष्य समान करे एटले ते अवशिष्ट आउखा साथेज वेदी लेवाय एवां बनावे. स्वायुष्यनुं तो अपवर्तन थतुं नथी, तेथीज एम कडं छे के पोते उक्त उपक्रम करीने वेदनीयादिक कर्म जे वधारानुं होय ते खपावे. उपर जणाव्या मुजब चार समयो वडे अनुक्रमे आखा लोकमां व्यापी जइ पाछा चारज समयवडे तेने संहरी शालेय छे ते आ प्रमाणे-पांचमे समये मन्थानना आंतरा संहरे छे, छठे समये मंधानने संहरे छे, सातमे समये कपाटने संहरे के अने आठमे समये दंडने संहरी शरीरस्थ-शरीरमांज स्थितिवाळा थाय छे. २७३-२७४ समुद्घात काळे कया समये कयो योग होय ते हवे बतावे छे: - Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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