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________________ श्री प्रशमरति प्रकरणाम् ॥९ ॥ शरीर नाम तथा निद्रानिद्रा, प्रचलाप्रचला अने स्त्यानधि एवं १६. पछी पाठे कषायोनो जे अवशेष रहेल होय तेने खपावे छे. पछी नपुंसक वेद अने स्त्रीवेदने. त्यारपछी हास्य, रति, अरति, भय, शोक, जुगुप्साने खपावे छे. पछी पुरुषवेदना त्रण भाग करी तेना बे भागने एकी साथे खपावे छे. त्रीजा भागने संज्वलन क्रोधमा प्रक्षेपी, क्रोधना पण त्रण भाग करी तेना बे भाग एक साथे खपाची, त्रीजो भाग संज्वलन मानमां नाखी संज्वलन मायाना पण त्रण भाग करी तेना बे भाग एक साथे खपावी त्रीजो भाग संज्वलन लोभमां नांखी लोभना पण त्रण भाग करी तेना बे भाग एक साथे खपावी त्रीजा भागना संख्याता खंडो करे, ते बादर खंडोने खपावतो बादर संपराय कद्देवाय छे. तेमां जे छेल्लो संख्यातमो भाग रहे तेना असंख्यात खंडो करे, ते बधा अनुक्रमे खपावतो सूक्ष्म संपराय कहेवाय छे. ते सघळा खंडो संपूर्ण क्षीण थये छते निग्रंथ थइ मोहसागरनो पार पामे छे. मोह महासागरनो पार पामी अंतर्मुहूर्त सुधी अगाध समुद्र उतरी पार पामेला पुरुपनी पेरे विश्रान्ति ले छे. विश्रान्ति लइ अंतर्मुहूर्तना बे समय बाकी रहेतां ते बे समयमांना पहेला समये निद्रा अने प्रचला ए बे प्रकृतिने खपावे छे अने छल्ला समये पांच प्रकारना ज्ञानावरण, चार प्रकारनां दर्शनावरण तथा पांच प्रकारना अंतरायने एकी साथे खपावी केवळज्ञान पामे छे. ए रीते १२२ प्रकृतिमाथी ६० प्रकृति क्षय थये छते केवळज्ञाननो लाभ प्राप्त थाय छे. २६२ ते आपकश्रेणिमा वर्तनारनी केवी अवस्था होय छे ते ग्रंथकार कहे छसर्वेन्धनकराशीकृतसंदीप्तो ह्यनन्तगुणतेजाः । ध्यानानलस्तपःप्रशमसंवरहविर्विवृद्धबलः॥ २६३ ॥ ॥९ ॥ Jain Education International For Personal Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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