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________________ भावार्थ:-जेणे सर्व मोहनो ( सर्वथा ) नाश कर्यो के अने सर्व क्लेशोनो अंत कर्यो छे, अर्थात क्लेशकारी कषायोनो नाश कर्यो के ( मोहनी प्रकृतिरूपज कषायो होवाथी मोहनो अंत करवा साथेज तेनो भंत थइ जाय छे तेम छतां ते कषायो अति दुर्दम होवाथी अहीं जुदा बताववामां आवेला छे) एवो ते महाशय संपूर्ण केवळज्ञान कळावान् सर्वज्ञनी पेठे शोभे छे. जेम राहुथी सर्वथा मुक्त थयेल संपूर्ण चंद्र शोभे छे, तेम मोहथी मुक्त थयेल ते महाशय संपूर्ण ज्ञान कळावान सर्वज्ञनी पेठे शोभे छे. २६२. प्रकरणकारे मात्र संक्षेपथी क्षपकश्रेणिनो क्रम जणाव्यो छे ते हवे विस्तारथी बताववामां आवे छे: प्रथम अनन्तानुवन्धी चारे कषायने एक साथे खपावे छे. बाकी रहेलो तेनो अनन्तमो भाग मिथ्यात्वमा नाखी मिथ्यात्वने खपावे छे. मिथ्यात्वनो पण शेष भाग सम्यमिथ्यात्व (मिश्र) मा नाखी तेने खपावे छे. तेमांनो शेष सम्यक्त्व मोहनीयमा नाखी तेने पण खपावे छे. जो प्रथम भायुष्यनो बंध पाड्यो होय तो ए सात प्रकृतिनो चय करी त्यांज अटकी जाय छे, आगळ उपर चडतो नथी; पण जो पहेलां आयुष्य बांध्युं न होय तो वचमां अटक्या वगरज सतत सकळ श्रेणि उपर चढे छ, अर्थात् ते श्रेणि पूरी करे छे. एटले पछी अप्रत्याख्यानी अने प्रत्याख्यानी ए आठ कषायने खपावे छे. सर्वत्र जे खपावतां बाकी रह्यं ते आगळ खपाववामां आवे छे. आठे कषायोनो संख्यातमो भाग खपावतो विमध्यभागे नामकर्मनी आगळ कहेबामां आवती तेर तथा त्रण निद्रा सुधां १६ प्रकृतिओ खपावे छे-नरकगति अने तिर्यचगति, एक बे त्रण चार इन्द्रिय जाति, नरक अने तिर्यचगतिनी अनुपूर्वी, अप्रशस्त विहायोगति, स्थावर, सूक्ष्म, अपर्याप्त अने साधारण For Personal Private Use Only
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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