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________________ कायावडे कायोत्सर्ग करनार अथवा काय व्यापारने रोकनार, प्रवचनोक्त विधिवडे धर्मध्यानना ध्यानार अने आर्त रौद्र ध्यानना अध्यवसायने रोकनार, निराबाधपणे समस्त क्रियानुष्टान करनार, निद्वंद्व एटले एकला-सकळ उपद्रव रहितनिष्कलह, इंद्रियोने जेणे जीति लीधी छे एवा अर्थात् इंद्रियोने पोताने वश करनारा, समस्त परिसहने सम्यक् प्रकारे सहनारा अने कषायना उदयने रोकनारा अर्थात् तेने निष्फळ करनारा एवा मुनि ज खरेखरा सुखमा रहे थे. खरा सुखनो तेज अनुभव करे छे. २४१. शब्दादिजन्य विषय सुखमाथी जेमनो अभिलाष नाश पामी गयो छे एवा अने स्वाध्याय संतोषादि जे प्रशमगुण तेनो जे समूह तेनावडे अलंकृत-विभूषित, एवा साधु जेम तारा विगैरेनी प्रभाने सूर्य पोतानी प्रभावडे पराभव पमाडे छे । अर्थात् पोते पोताना तेजथीज प्रकाशे छे अने बीजा सर्व तेजने परास्त करे के तेम देवमनुष्यादि सर्वना तेजने पराभव पमाडीने पोते पोताना तेजवडे-पोताना गुणोवडे प्रकाशे छे. २४२. सम्यग् दर्शनसंपन्न, सम्यग् ज्ञानसंपन्न, विरति अने तपोबळवडे युक्त एटले विरतिरुप मूळ गुणवडे अने तपादि उत्तर गुणवडे संयुक्त छतां पण जो क्रोधादि कषायना उदयथी प्रशमने पामेला होता नथी तो तेश्रो ते गुणने मेळवी शकतो नथी के जे गुणोने प्रशम गुणाश्रित प्राणी मेळवी शके छे-पामी शके छे. अर्थात् प्रशममा रहेला प्राणीने ज | पूर्वे कहेला गुणो लेखे थाय छे, बीजाने थता नथी, तेथी प्रशमगुणीज थबु, सर्व सुखने सर्व गुणोनो आधार प्रशमज समजवो. Jain Education inte For Personal Private Use Only metainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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