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संसारमा अपरिमित काळ पर्यंत परिभ्रमण करे छे. ए मिथ्यात्वनुं स्वरूप अन्य ग्रंथोथी जाणी लेवु. अहीं तेनो विस्तार करवामां आव्यो नथी. - हवे ज्ञानना मुख्य पांच भेद छे. तेमां बे परोक्ष ज्ञान छ भने त्रण प्रत्यक्ष ज्ञान छे. अक्ष शब्द अहीं आत्मावाचक छे. जे ज्ञान इंद्रियोना साधन सिवाय परमायु जाणी शके छ अर्थात् जे ज्ञानमा आत्माने इंद्रियादिकनी अपेक्षा रहेती नथी ते प्रत्यक्ष ज्ञान कहेवाय छे. प्रत्यक्ष ज्ञानना पण वे प्रकार छे. देश प्रत्यक्ष ने सर्व प्रत्यक्ष. अवधि ने मनःपर्यव ए देश प्रत्यक्ष छ; केवळज्ञान सर्वप्रत्यक्ष छे. मति भने श्रुत ए बे परोक्ष ज्ञान छे. ते इंद्रिय अने मनना निमित्तथी इंद्रियोद्वारा
आत्माने थाय छ साक्षात् आत्माने परभार्या थता नथी. ए बंने ज्ञान क्षयोपशमजन्य छे. प्रत्यक्षज्ञानमां पण अवधि ने मनःपर्यव क्षयोपशमजन्य छ भने केवळज्ञान क्षायिक भावनुं छ. ते ज्ञानावरणीय कर्मना सर्वथा क्षयथी ज उत्पन्न थाय छे. मतिज्ञाननु चीजें नाम आभिनिवोधिक ज्ञान छे. श्रुत-आगम ते अतींद्रिय विषयवारों छे, परंतु ते सर्वज्ञकथित होवाथी यथाथे बोध आपनार छे एटले ते प्रमाणभूत गणाय छे.
मतिज्ञानना श्रुतनिधित अने अश्रुतनिश्रित एवा वे प्रकार छे. श्रुतनिश्रितना अवग्रह, इहा, अपाय ने धारणा एम चार भेद छे. अवग्रहना पण व्यंजनावग्रह ने अर्थावग्रह एवा बे प्रकार छे. श्रुतनिश्रित मतिज्ञानना एकंदर २८ भेद थाय छे. ए दरेक भेदना वळी बहु ने अबहु, बहुविध ने अबहुविध विगेरे बार बार भेद थाय छे, एटले बधा मळी ३३६ भेद थाय छे. अश्रुतनिश्रित मतिज्ञानना औत्पातिकी, वैनयिकी, कार्मणकी अने पारिणामिकी बुद्धिरूप चार भेद
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