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सुख प्राप्त थाय छे के जे पुनः पुनः प्राणीने संसारमा परिभ्रमण करावे छे. हवे पंधतच्च समजावे के. कर्मनी संततिज्ञानावरणादि कर्मोनो अविच्छेद ते बंध कहेवाय छे. कारणके पूर्वकर्मना उदयवडे ज प्राणी नवां कर्म बांधे के अने वे उदयमा आवतां सुधी सत्तापणे रहे छे. पूर्व कर्म सिवाय नवा कर्म बंधाता नथी. बंधना चार प्रकार कहेला छे.१ प्रकृति बंध, १ स्थिति बंध, ३ अनुभाग बंध अने ४ प्रदेश बंध. आ चारेनो प्रदेशबंधमा समावेश थइ जाय छे. कारण के बंधायेल कर्मोना प्रदेशोनो स्वभाव, तेनी स्थिति अने तेनो रस ते प्रदेशमा ज रहेल छे. बीजी रीते प्रकृतिबंधमां पण बीजा त्रण प्रकारना बंधनो समावेश करवामां आवेलो छ. आ चारे प्रकारना बंधन स्वरूप कर्मग्रंथ, कर्मप्रकृति, पंचसंग्रहादिकथी जाणवा योग्य छे. बंधनुं यथार्थ स्वरूप समज्या पछी तेने अटकाववानो उपाय ठीक थइ शके छे. जेम व्याधिनुं यथार्थ निदान थया पछी चिकित्सा बराबर थइ शके छे तेम. समग्र प्रकारे कर्मोनो जे आत्यंतिक क्षय-वियोग ते मोक्ष कहेवाय छे. मोक्ष ते काइ जुदी वस्तु नथी. अनादि काळथी कर्मोवडे बंधायेला जीवोनुं जे तदन कर्मरहित थइ जq-कर्मोनो एवो आत्यंतिक वियोग थवो के जे फरीने बंधाय नहीं तेनुं नाम मोक्ष. एवी कर्मविरह दशा थतां शुद्ध निर्मळ थयेल आत्मा लोकाग्रे जइने रहे छे. प्रसंगोपात मोक्ष (सिद्धि ) स्थाननु वर्णन मोक्षद्वारमा करवामां आवे छे, तेमज सिद्धना भेद अने तेनी संतपदादि नव द्वारवडे प्ररुपणा करवामां आवे छे, ते नवतत्त्व प्रकरणादिकथी जाणी लेवी. बाकी मोक्षतचनो अर्थ तो टुंकामा उपर जणाव्यो छे तेज समजवो. आ प्रमाणे कर्ता कहे छ के-संक्षेपी नव पदार्थो कह्या. २२१
इति नवतत्त्व स्वरूपम्.
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