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________________ प्रशमरति प्रकरणम् ॥६८॥ जो के धातुओना अनेक अर्थ थइ शके छ तो पण चौद पूर्वधरोए शास धातुने अनुशासन अर्थमां अने त्रै धातुने पालन अर्थमा सर्व प्राकृत संस्कृतादि शब्दज्ञोए नक्की कर्यो छे. रागद्वेषवडे जेमनां चित्त उद्धत थइ गयां के तेमने चमादि दशविध धर्म संबंधी अनुशासन करे के भने शरीर तथा मन संबंधी दुःखथी सारी रीते रक्षण करे छे, तेथी यथार्थ न्यायवादी सत्पुरुषो निश्चय करी तेने शास्त्र कहीने बोलावे छे. अनवद्य अनुशासन भने संरचण बळ एटले शुं? ते शास्त्रकारना आशयथी टीकाकार स्पष्ट करे छे-के जेम कोइक | बीजानो उपघात करीने अन्यने रक्षे छ तेम तेवा सावद्य-सदोष उपाय वडे नहि, पण निर्दोष अनुशासनना बळे संसारस्वभावने समजावता अने तेथी उलटा मोचमार्गने बतावता भने ए रीते निर्दोष उपाय वडे शरणागत प्राणीमाने वाधा रहित सारी रीते रचवा वडे करीने जे युक्त होय तेज वास्तविक रीते शास्त्र लेखाय छे. उक्त उभय अर्थथी युक्त एवं शास्त्र तो समस्त रागद्वेषादि दोष मात्र जेमना क्षीण थया होय एवा सर्वत्र वीतरागनां ज वचन होइ शके, पण बीना कोइना वचनरूप होइ शके नहि. १८५-१८८ तेज श्री वीतरागनां वचन उद्देशथी दर्शावता छता हवे शास्त्रकार कहे छ।जीवाजीवाः पुण्यं पापानवसंवराः सनिर्जरणाः । बन्धो मोक्षश्चैते सम्यक् चिन्त्या नवपदार्थाः ॥१८९॥ भावार्थ-जीव, अजीव, पुन्य, पाप, पाश्रव, संवर, निर्जरा, बंध अने मोक्ष ए नव पदार्थो सारी रीते ॥ ६८॥ Jain Education int For Personal Private Use Only S ainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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