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________________ Jain Education Inter K+******+******+ त्रिकरण शुद्धिथी तेमनो अनुक्रमे त्याग अने आदर करवो. १६५ - १६६ विवेचन – नायक जीताये छते ' हतं सैन्यं अनायकं ' ए न्याये पछी इन्द्रियादिकनुं जोर चालतुं नथी. तेथी परीषद, इन्द्रियो ने गौरव (अभिमान) रूप समूहना नायक एवा कषायोने क्या साधनथी जीतवा ? ते शास्त्रकार पोते ज जगावे छे. क्षमावळ, मार्दव- मृदुताबळ, आर्जव - सरलतावळ अने संतोष बळवडे अनुक्रमे पूर्वोक्त क्रोध, मान, माया अने लोभ कषायने धीर पुरुषे जीती लेवा जोइए. अडग उद्यमथी शुं शुं सिद्ध नथी थतुं ? ठीकज कह्युं छे के Patience and Persivearance over come mountains. जे जे कारणोने पामीने क्रोधादिक कपायो उत्पन्न थता होय तेनो, अने जे जे कारणोथी क्रोधादि कषायो शान्तउपशान्तथता होय तेनो, सारी रीते विचार करीने राग द्वेष अने मोहने निवारवा माटे त्रिकरण शुद्धे कषाय उत्पत्तिनां कारणोनो त्याग अने कषाय शान्तिनां कारणोनुं श्रासेवन-मन वचन कायाथी कर, कराव अने अनुमोदनुं ते जरुरनुं छे. एटला माटे क्षमादिक दशविध साधुधर्मनुं अनुशीलन करवुं जोइए एम शास्त्रकार कहे थे, १६५ - १६६. सेव्यः क्षान्तिर्मार्दवमार्जवशौचे च संयमत्यागौ । सत्यतपोब्रह्माकिंचन्यानीत्येष धर्मविधिः ॥ १६७ ॥ भावार्थ - क्षमा, मृदुता, ऋजुता, पवित्रता, संयम, संतोष, सत्य, तप, ब्रह्मचर्य अने निष्परिग्रहता ए रीते दशविध धर्मविधि सेवा योग्य छे. १६७. विवेचन - ते क्षमादिक दशविध धर्मना मेदोनां नाम जणावे छे. १ क्षमा- प्राक्रोश प्रहारादिक सहन करवा. For Personal & Private Use Only 10-**-6****+03 *****@*••**←→ www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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