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________________ सद्धर्म मार्गना कथक गुरुनो योग मळवो दुर्लभ छे. तेवो सुयोग मळ्ये छते पण प्राणी घणा कार्यमा व्यग्र थयेल होवाथी तेमज भाळस, मोह, अवज्ञा, मद, प्रमाद, कृपणता, भय, शोक, अज्ञान अने कुतुहळादिक काठीभावडे धर्मश्रवण करवामां प्रवृत्ति थइ शकती नथी माटे तेनी दुर्लभता जणावी छे. वळी ए बाय वानां प्राप्त थये छते पण शंकादि शन्य रहित सम्यग् | ज्ञान सहित तत्वश्रद्धा प्राप्त थवी अत्यंत दुर्लभ छे. मतलब के बीजी वधी शुभ सामग्री पाम्या छतां श्री वीतरागकथित धर्मनो बोध भने तेनी उंडी श्रद्धा थवी बहु दुर्लभ छे. सेंकडो भवे पण प्राप्त थर्बु दुर्लम एवं बोधिरत्न (सम्यक्त्व) प्राप्त थये छते पण सर्वविरति के देशविरति (आत्मनिग्रह योग्य संयम दशा) प्राप्त थवी दुर्लभ छे. तेनां कारण शास्त्रकार बतावे छे. आ कार्य करीने के पेठे कार्य करीने पछी आवक धर्म आदरीश, पण सर्वत्यागरूप साधुमार्ग तो पादरीश नहि. एवा प्रकारे मोह या अज्ञान नडे छे. जीव जाणतो नथी के आ क्षणभंगुर जीवित पलकमां पूरूं थइ जशे तेथी स्वहित साधी लेवामां विलंब करवो घटतो नथी. वळी बापडो जीच स्त्रीपुत्रादिकमा अनुरक्त थइ जवाथी घरवास तजी शकतो नथी. तेम ज अनेक कुपंथो-मतमतांतरो जोवाथी शंकामा | पडी जाय छे के आ बधा मार्गोमां कयो मार्ग अनुसरवाथी भव-संसारनो पार पमाय ? तेथी अने ऋद्धिगारव, रसगारव तथा शातागारवथी पण चारित्रधर्म आदरी शकतो नथी. प्राप्त थयेली द्रव्यसंपदा लोभवशात् तजी शकतो नथी. रसना इंद्रियने वश बनी जवाथी इष्ट रसासक्ति तजी शकतो नथी अने शरीर-ममतावश सुखशीलपणाथी इष्ट चन्दनादि विलेपन, सानुकूळ खान पान शयन गन्ध धूप माल्यादि सेवन तथा स्त्रीपरिभोगमा आसक्त बनी जवाथी तेनो त्याग कमा पूर्व थर जमागे तो आदरीशार बतावे छे. आपतविरति के देश For Personal Private Use Only IALr.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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