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________________ श्री प्रशमरति प्रकरणम् | पाम्या पछी पणश्रवण आदि सामर आर्यदेश, उत्तम तां दुर्लभां भवशतैर्लब्ध्वाप्यतिदुर्लभा पुनर्विरतिः। मोहाद्रागात्कापथविलोकनागौरववशाच्च ॥ १६३ ॥ | तत्प्राप्य विरतिरत्नं विरागमार्गविजयो दुरधिगम्यः । इन्द्रियकषायगौरवपरीषहसपत्नविधुरेण ॥ १६४ ॥ भावार्थ-मनुष्यपणुं, कर्मभूमि, आर्यदेश, उत्तम कुळ, आरोग्यता अने दीर्घायुष प्राप्त थये छते तेमज श्रद्धा, सद्गुरुयोग अने शास्त्रश्रवण आदि सामग्री विद्यमान छते पण सम्यक्त्व प्राप्ति अति दुर्लभ छे. सेंकडो भवे दुर्लभ एवं सम्यक्त्व पाम्या पछी पण मोहथी, रागथी, कुमार्ग देखवाथी अने गौरवना वशथी चारित्र प्राप्त थर्बु अति दुर्लभ छे. ते चारित्ररत्न पामीने इंद्रिय, कषाय, गौरव अने परीसहरूप शत्रुथी विह्वळ थयेला जीवने वैराग्य मार्गमा विजय मेळववो ए अत्यंत कठीन छे. १६२-१६३-१६४. विवेचन-प्रथम तो 'चुल्लक, पासगादि' दश द्रष्टांते दुर्लभ एवा मनुष्यभवनी ज प्राप्ति थवी मुश्केल छे. महा पुन्ययोगे मनुष्यभव प्राप्त थवे छते पण ज्या असि मसि कृषिथी व्यवहार चलावाय छे एवी कर्मभूमिमा जन्म पामवो सुदुर्लभ छे. ज्यां तीर्थकरो उपजे छ तथा सद्धर्मनी देशना देवामा तत्पर रहे छ भने जेने अवलंबी भव्यजनो निर्वाणपद (मोक्ष) पामे छे ते कर्मभूमिमां पांच भरत, पांच औरवत अने पांच विदेह ए पंदर क्षेत्रोनो समावेश थाय छे. तेवी कर्मभूमिमां पण मगध, बंग, कलिंग, सौराष्ट्र प्रमुख आर्य देशमां अने तेमां पण इक्ष्वाकु के हरिवंशादिक उत्तम कुळमां जन्म थवो घणोज दुर्लभ छे. ते पण सघल्लं प्राप्त थये छते धर्मजिज्ञासा थवी दुर्लभ छे, अने एवी उत्तम धर्मजिज्ञासा थये छते ॥५८॥ Jan Education For Personal Private Use Only ale.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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