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________________ प्रशमरति प्रकरणम् ॥४४॥ दिक इष्ट विभूति संपादन करी आपवा सूचव्यु. ते बधुंय पिशाचे थोडा वखतमा करी प्राप्युं अने बीजा कार्य माटे फरी पूछy. एटले वणिके जणाव्यु के ' एक अति दीर्घ वांस लावी घरना भांगणे खोडीने तुं व्हडवा उतरवार्नु काम त्यां सुधी करतो रहे के ज्यां हुँ तने फरी बीजु कंइ काम करवाने फरमाq.'ा प्रमाणे व्यवस्था करी देवाथी वणिकनो पराभव थाय एवो अवकाशज पिशाचने मळ्यो नहीं. ए प्रमाणे दिन रात सद् अनुष्ठान सेववामा तत्पर रहेनारा साधुजनोने पण | दुष्ट विचार छळवाने शक्तिमान् थता नथी. बीजुं एक कुळवधुनुं दृष्टांत शास्त्रकार नीचे मुजब आपे छः रूप लावण्यथी भरेली कोइ एक कुळवधुने कोइ एक जारकर्म करनारे दीठी अने विषयभोम माटे प्रार्थना करी, जे तेणीए कबूल राखी. मावो तेणीनो अभिप्राय तेनी सासुए जाणी लीधो अने तेणीने माथे सघळो घरव्यापार नांखी दीधो. घरसंबंधी सघळां कामकाज तेणीनेज करवानां माथे भावी पडवाथी निद्रा लेवानो अवकाश पण हवे तेणीने मुशीबतथी मळवा लाग्यो, तो पछी विषयभोग संबंधी पहेली कबूलात याद ज कोने आवे? ए रीते निज सदाचार सेववामां सदा मग्न रहे नारा मुमुचु साधुजनोने पण विषयभोगादिक संबंधी वात क्याथी याद आवे ? एटला माटेज साधुए संयम व्यापारमांज *निज मनने निमन करी देवु एटले के विषयकषायनो सारी रीते निग्रह करी पवित्र मन वचन अने कायावडे अहिंसादि | महाव्रतोनी धुरा धारण करी राखी त्हेनो अंत सुधी बहादुरीथी निर्वाह करवो. कदापि प्रमाद वश थइ जवू नहि. १२०. * प्रारीते सत् क्रियानुष्ठानमा मग्न थयेल महात्मा आ लोक संबंधी भोगना कारणो विषे अनित्यता विचारे ते ग्रंथकार | जणाचे छ: प्रशा॥४४॥ +1 For Perona Pre Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600205
Book TitlePrashamrati Prakaranam
Original Sutra AuthorUmaswati, Umaswami
Author
PublisherJain Dharm Prasarak Sabha
Publication Year1932
Total Pages240
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size19 MB
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