________________
सूत्र
साधु प्रति
अर्थ
नो हुं स्वीकार करुं छं. वली हुं शुं करुं छ! तो के, ॥जं संजरामि, जं च न सनरामि, जं पमिकमामि, जं च न पमिकमामि, तस्स सबस्स
देवसिअस्त ॥ अर्थः-(जं के0 ) यत्, एटले जे. अर्थात् जे कोइ अतिचार मने लागेलो होय, ते ( सनरामि के0 ) स्मरामि, एटले जे कोइपण प्रकारनो अतिचार, के जेतुं मने स्मरण रहेलुं बे, तेमज ( च के ) च, एटले वली (जं के0 ) यत्, एटले जे अर्थात् जे कोई अतिचारने (न संजरामि) एटले स्मरण रहेलु नयी, अर्यात् जे कोइ पण प्रकारनो अतिचार, के जेनुं मने स्मरण रहेलुं नथी, तेमज (जं के0 ) यत्, एटले जे, अर्थात् कोषण प्रकारनो अतिचार, के जे (पमिकमामि के0) प्रतिक्रमामि, एटले में पमिकमेलो बे, जे कोइपण जातनो अतिचार, के जे अतिचारनुं में प्रतिक्रमण करेलु डे, तेमज ( च के० ) च, एटले वली (जं के0 ) यत्, एटले जे, अर्थात् जे कोइपण प्रकारनो अतिचार, के जे अतिचारनुं (न पमिक्कमामि के0) न प्रतिक्रमामि, एटले में प्रतिक्रमण करेलु नथी, अर्थात् जे कोइ अतिचारने में पमिकम्या नथी, एटले जे अतिचारोनी में आलोचना लीधेली नथी, ( तस्स के ) तस्य, एटले ते ( सबस्स के ) सर्वस्य, एटले सघला, अर्थात् समस्तप्रकारना (देवसिअस्स के ) दैव सिकस्य, एटले दिवसनी, अर्थात् दिवससंबंधि,
॥अश्यारस्स पमिकमामि ॥ अर्थः-(अश्वारस्स के ) अतिचारस्य, एटले अतिचारने, अर्थात् दिवससंबंधि समस्तप्रकारना अतिचारोने, एटले अपराधाने (पमिकमामि के० ) प्रतिक्रमामि,एटले हूं पमिकमु छ अर्थात् ते सघला प्रकारना अतिचारोनुं हुं प्रतिक्रमण कर छ; एटले ते सघला प्रकारना अतिचारोथी हूं निवर्ग छ.
॥ समयोहं, संजय विरय पहिय पञ्चरकाय पावकम्मो, अनियाणो ॥ अर्थः-(समणो के0 ) श्रमणोहं, एटले हं श्रमण छ अर्थात् पांचे प्रकारना महाबताने धारण करवावालो एवो हंसाधु छ. वली हुं केवो छु? तो के, (संजय के0 ) संयत, एटले संयत छु, एटले नियंत्रित करेल डे, अर्थात् बंध करेल पाप क.
॥६०।
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org |