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________________ साधु मूत्र पनि अर्थ । ३३५६५ ॥ नपसंहाररूप फल कहे जे.॥ नं वाग्गोचरातीतं नावयन् परमेष्ठिनम् । प्रासादयति तयस्मान्न तूयो विनिवर्तते ॥ ५॥ अर्थः- प्रमाणे वाणीथी नहीं वर्णवी शकाय एवी परमात्मनी जावना करता करता पानेज परमात्मरूप बने ते, अ-! यात् माद-लक्ष्मीने पामे डे के ज्यांथी फरी पार्छ जबसमुश्मा पम्वानुं नषो. ॥ ए५॥ ॥ आत्मा सर्वदा एकांतमुक्त बे एम माननारा सांख्यमतने निरास्त करे ने. ॥ अयत्नजनित मन्ये झानिनां परमं पदम् । चेदात्मन्यात्मविज्ञानमात्रमेव समीदते ॥१६॥ अर्थ:-आत्मामां आत्मानुं ज्ञान मात्र वस दे. एम जो इला गखे तो हुँ एम मार्नु 8 के झानोन पद अयत्न माध्य दे. विवचन-मांख्य मत प्रमाणे आत्मा निस मुक्त होय तो पनी मादने माडे प्रयास करवानी जरूर शी परतु ते नियमुक्त नयी. माटे आपण मुक्त थवा प्रयास करवो पमेज, पापड़ी महज आनंदरूप थक रहे बे. ॥ मरणा पत्र परमात्मानो अनाव डे, एम कहेनारने कहे ते. ॥ बन्ने दृष्टविनाशोऽपि यथाऽऽत्मा न विनश्यति । जागरेऽपि तथा नतिरुनयत्राविडोषतः ॥ ४ ॥ अर्थ:-स्पप्लमां देखेली वस्तुना विनाशयी कंइ आत्मानो नाश यता नयी. तेज जागृतमा चनिथ खली वस्तुना नाशयी पण कं आत्मानो नाश नथी थतो. कारण के वेनमा विपर्याम समान ले. ॥ ७ ॥ विवचन-जन्ममरण जागृतमा देखाय ते वेजना नाशयी तेजरीने आत्मानो नाश नयी थनी काराक ने अनुनयरूप जागृत अवस्यामां जन्ममरानो आत्मा, दृष्टश झाता था रहे हैं. अमेरिकामा युनामदेटा मिचिगन नाम एक रलिया. मा संस्थान ने. आ संस्थानन मुख्य शहर मिट्रोइट ले, तेमा माकदर समा न मनां पत्र र द. आ बन्न जे मागं वेन ने बनेवी बे, ते मारा शिष्य वर्गमा हता. तेमने घेर वर्गमा हुं ध्यानो पाठ अपतो हता. हवे अनाव एवा बभ्या के मारां देन मिसीस मेमोन पोताना लग्न वखने नेट मळलु, एक घ[ज सुंदर, पुष्पपात्र एक देवलपर पलं हतुं. ते वर्गमां पापनार एक Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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