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________________ प्रति साधु ! यवामां शध नयी. परंतु आत्मस्वरूप ययार्य स्वमवेदन यधुं जोइए. जैनशान जैन या वावगं नदार बुवाळु ले. तेमज प !! मृत्र रमेश्वरनी वावतमां पण नदार बुझिवाळू . श्रीमद हेमचंशचार्य कहे ते के, आ जीवने जवानवमां जटकावनार राग देप ने, अने ए जब नत्पन्न करनारा रागषनां बीजो जनां बळी गयां ले. ते जोए तो शिव होय. जोए तो वर्षमान होय, जोइए तो विष्णु होय, तेने मारो नमस्कार दे. हवे मात्र जोवान एटलुंज ने के. रागय वीजा देवने दे या नदि, अन जानि. लिंग जेम श्रावक के साधु मुनिराजन बे, तेम बीजाने पण : माटे आत्मस्वरूपने यथार्थ ते नळव ने या नहि, तेन परीक्षा कर. वामां विचरण य, जाइए. परंतु खोटो आग्रह करी परनिंदामां तो नज पमg. अंतरात्माए तो बनतां मुधी बोजा नपर क रुणावुनि दाखवली. ते न रहे तोज नपेक्षा करवी. कारण के एज तेने श्रेयस्कर ले, अने ज अंतर त्या न होय, नांव्य सम्यक्त्ववान होय, तेने पण मारी एज जलामण ने के अन्य दर्शननो परिचय न कम्बो. परंतु तेनी निंदा करी पोताना आत्माने रागषयी काळी न करवो, हा यथार्य समय जोइ बोलवू, वर्त, परंतु नेमां पोते जोवु के मने रागइप याय डे के नहिजो रागपि थता होय तो मध्यस्थन रहेQ. ऽव्य सम्यक्त्ववान मुदेव, मुगुरु, अने सुधर्मने जाणे , तेणे तो पोताना मा ध्य तरफ दृष्टि राखची के, अमारा देव. गुरु अने धर्म केवा ? ख पृटो तो देव गुरु अने धर्मने अनुमरनारा, धर्मने अर्थे शासन, तामन, तर्जन विगैरे करे, परंतु जेने शासनादि करे, तेना नपरथी. पण तेनी करूणादि न जाय. तेने शासनादि करवामां पण तेन हित दोय. मन तो आम मार। मतिकल्पनाथ मुम्युं . यथार्थ ज्ञानी महाराज के गीतार्य महाराज जाणे. आ संबंधमां तेनुं जे वचन होय ते पने पण प्रमाण .-जा. क. * ॥ जेम जाति अने लिंगनू का तेमज अनात्मदर्शीने देहने विषे बीजो पण के वो विपर्यास थाय ले ते कदे दे. ॥ अन्नेदविद्यया पंगोति चकुरचकुषि । अङ्गेऽपि च तथा वेत्ति संयोगाद् दृश्यमात्मनः ॥ ७॥ अर्थः-जेने दशान नयी, ते जेम पांगळानो दृष्टि आंधळाने आरोपे ले, तेमज आत्मा अने देदना संयोगयी आत्मानी Um दृष्टि देहने विषे आरोपे . ॥ नए विवेचन-कोई पांगळो आंधळाने खने बेसी चाख्यो जाय दे. हवे देख ले तो पांगळो पण एम कहे के आंधळो देखे | य Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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