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________________ साधु । विवेचन-पूरावं, गळवं एबो जेनो स्वजाव ते पुल, एवां पुनलो केटलांक जेगा ययाथी थपखं आ शरीर ते आत्मा । || मनायों. अरेरे, पातो प्रिय बांचनार, आपणी:सजम जूल थले. परंतु तेनों शोक करी बह रमी रहेवामां मा अर्थः ॥ ने पण स्पाय करवो. ते एज नपाय के हवे एवी भूल न यत्रा देवी. कर्मना दोरीसंचाथी चालतो पोते इतो सांसुधी एप ययु. ॥३०॥ शुं करे! परवश थइ गएलो बापमोहिशे, परंतु हवे उपयोग शुन्य न थर्बु के फरीथी या शरीर ते आत्मा मनाई जाय, अने झानमय, आत्तातो जाणे जेज नहि, एम य जाय, तेनी संजाळ अवश्य राखवा-ना. क. ॥ हवे निश्चय मोक्ष कोने के अने नथी कोने ते कहे जे.॥ मुक्तिरेव मुनेस्तस्य यस्यात्मन्यचलस्थितिः । न तस्यास्ति ध्रुवं मुक्तिर्न यस्यात्मन्यवस्थितिः ॥ ५ ॥ । अथः-मुक्ति तो ते मुनिनेज ले के जेनी आत्मस्वरूपमां अमोल स्थिति बे परंतु जेनी आत्मस्वरूपमा अमोलवृत्ति नथी, तेने निश्चय मुक्ति नथी. ॥ ५॥ ववचन-नियवांचनार, आपणे सांनळीए बीए के " मेरुपर्वत जेटला या मोमती"थाय, तोपण मुक्ति न थाय. ह. वे विचारो के ज्यारे मेरुपर्वत जेटला थाय, सारे चारित्र केटलां बधां लीयां होय अने ते बता एवा एकला इव्य चारित्रथी में क्ति नहीं. ते बतां जेनने वितरागवचनमा श्रम , अने चारित्र ग्रहण करें, तेनने संसारीनी अपदाथी एमां कर्मबंधन में बी थवानो संजय बे. परंतु आत्मतत्वनी खबरविना तपश्चर्यादिना प्रनारे देवतादिना पुलिक चुंयणां कदाच मळे, परंतु मो. कसुखनी तो प्राप्ति आत्मझानविना मुनिने पण नथी, एम निश्चय लागे ने माटे आत्मज्ञान करवु अवश्य बे-ता. क. ॥ यथार्थ आत्मस्वरूप जाणनारे आत्माने देवयी जदो जावो.। दृढः स्यूलः स्थिरो दीर्घा जीर्णः शीणों लघुर्गुरुः । वयुवमसंबंध त्वं विद्यादिनात्मकम् ॥६॥ Hirol अर्थः-सारे मजबूत, जामो, स्थिर, लांबो, जूनो, दणिक, मोटो भने नानो, ए सघना पर्याय शरीरनी साये जोमवा. । झानात्मक एवा पोताना आत्माना ए पर्याय . एमज न जाणवू. ॥ ६ ॥ ॥ माणसोनो सेसर्ग ए स्वसंवेदन आत्मानो अनुनय करवा देना नयी, माटे एकांतमा रहेg एम कहे .॥ । dain Education Interational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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