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________________ माधु ति UE ॥ जाणे रक्त घने ध्वस्त नात्मा जीर्णादिकः पटे । एवं वपूषि जीर्णादौ नात्मा जीर्णादिकस्तथा ॥ १ ॥ अर्थः अर्थः-शरीरे पेहेरेलु लुगहुं फाटेतुं होय, लाल होय, नाम होय, जुन दोय, तेथी कंई शरीर जाउँ, पातळ कडेवाय नहि, तेमज शरीर, जाउँ, पातळु होय, तेथी कंई आत्मा जामो, पातळो, फाटलो, लाल एम कदेवाय नहि. ॥१॥ ॥हवे अंतरात्मामां मुक्तिनी योग्यता आवी के नही तेनी परीक्षा.॥ चलमप्यचलं प्रख्यं जगद्यस्यावन्नसते । ज्ञानयोगक्रियाहीनं स एवास्कंदते शिवम् ॥२॥ अर्थः-आ हालतुं चालतुं चल एवं जगत् पण जेने मेरुना सर अचल लागे ; शानवगरनु, तेमज मन वचन ने कायानी क्रियावगरनुं जम जवु लागे ढे, तेज शिव एटले आनंदमय मोहने पामे दे. ॥ १३ ॥ विवेचन-जेम दोरीसंचाथ चालतां पुतळांने समजु तो एम जाणे के तेमां जीव नयी; तेमज कर्मरूप दोरीसंचाथा चालतुं आ जगत् जम डे, तो जमपति रागष शो! कोई दोरीसंचानुं पुनलु तमंने कदाच लाकमो लगावे, के तमने पंपाळे, ने मुं तमारे पण तेमज करवू! तेमां तो उलटी मूर्खाइ जगाशे. माटे कर्मरूपी दारी संचाथी चालतां आखा जगत् नपर पण कं रागदेष करवा जेवू नयी-ला. क.. विशेष-झानी अने अज्ञानीनी दृष्टिमां फेर मात्र आटलोज डे परंतु आ दृष्टि अवामान कंई परिपूर्ण आनंद मानी लग नहि जेम ए पुतणां जीवांडे, एम भूली जवाय डे, तेमज आ जगत् जम डे एटनुं जगवार रही पाछु पोज दालतुं चालतुं मनाय, तो बंधननो संजव रहे, पण कर्मना दोरीसंचायी हाले चाले डे, ए बात न विसराय, एवुन जो विशेष कालवी जागृतमां, तेमज स्वप्नमां पण बन्युं रहे, तो राग देष थवानो संजव नयी. अने राग देष न यवा एज वितरागा, पनी जे अंश राग देष न होय ते अंशे वीतरागपणुं होय. कारण के कर्म चोटे डे राग षियी अने ज्यारे रागप यता नयो, सारे चाटते ॥४६॥ केम! कर्मने पोतामां कई चीकास नयी, राग एज चीकास डे, अने नेने लीधे कर्म चोटे, जो राग क्षेप गया तो पूर्वना कमने खर पण जोइए. परंतु आ दशा जेटले अंशे होय, तेटले अंशे जुना कर्मनी निर्जरा अने नवांगें रोका जवू यायवे. माटे Jan Eduan International For Personal & Private Use Only www.jahelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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