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साधु
प्रति०
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विवेचन - समय आत्मानी शक्ति जणाववाने, आम उदाहरण यापी शकाय कोई अचिंत्य वस्तु बे, जे वचनमां यावी शक्ति नथी. परंतु ते त्रण स्वरूपे देखाय है अर्थात् बरफ, पाणी अने वाप्प. ( वराळ ) हवे इंडियारमाथी निकळतु ते बरफ, मनमां जे जगातुं ते जळ, अने मनयी पर जे जलातुं ते बाष्प, परंतु जेम वरफ, जळ, अने वाप्प ए त्रण एकज व स्तुमां स्वरूप छे तेमज इंड़ियोमांथी, मनमांयी, अने आत्मामांची स्फुर्ति शक्ति एकजरूप जे.
॥ आत्माने स्त्री, पुरुषादि वेद नथी ने संख्या नयी ॥
एतदेव एकं बहूनीति धियः पदम् । नाहं यदात्मनात्मानं वेत्त्यात्मनि तदस्म्यहम् || २ || अर्थ:-नर, नारी, के नान्यतर हुं नथी, तेमज एक वे के बहु ए पण हुं नथी. कारण के ए वेद, अने संख्या ए तो देने छे, ते हुं कां देह नथी. सारे हुं तो फक्त आत्माए करी आत्मामांज नळखातो आत्माज छु ॥ १५ ॥
विवेचन - नर नारी ने नान्यतर ए शरीरमां त्रण पर्याय ते. दवे जो शरीरज आत्मा नथी. तो नर नारी अने नान्यतर क्यांथी होय? संख्या, एकवर्गमां आवेली एक चीजना जागो डे. परंतु आत्मा अविभाज्य होवाने सीधे तेनी संख्या केम थइ शके ?
जापान्तरकारथी अमेरिकामां आवेला युनाइटेक स्टेट्सना चिकागो नगरमा मिसीस नोरा पेट्री नामनी एक सहोदर व्हेने, प्रश्न करतां कंशक अनुज गत उत्तर आपायुं हतुं ते आत्मानंदीने उपयुक्त जाणी अत्रे लख्युं छे.
व्हेन मिसीस नोरा पेट्रीए कनुं के, मने मारा पतिमां पतिज्ञाव, मार श्यामां पुत्रीजात्र, अने मारामां नोराजाव, एम होवायी प्रेम वेंचाइ जतो नथी ? ने वेंचाइ जवायी पातलो थइ जतो नथी ? ने तारामां बंधुत्वाव आववायी तो चार जागमी वेंचाइ जाय है; एम एकज प्रेमनी चार संख्या य. हवे सर्व मनुष्यामां ने सर्व जंतुनमां, हुं जो प्रेम राखुं, तो विश्वमां जेटली व्यक्तिन बे, तेटला प्रेमना खं यइ जाय. उत्तर व्यापत जाषांतरकारे कां के एम नहि, ज्यारे व्हेन, हुं तारी सन्मुख जोनं, सारे रूपी यखं प्रेम तारामां जगिनी जात्र पाठे. छाने ज्यारे मारा बनेवी तरफ जोन्छु, सारे तेज रूपि खं प्रेम पोतानुं स्वरूप बदली आखोने
आखा
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मूत्र
अर्थः
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