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________________ साधु || धोए परतणां, पडे अयोगति जाय ॥ १५ ॥ जे मल मूत्र धोए सदा. गुणवतना निशदिस ॥ ते दुर्जन जीवो घj, जगमां को।। मूत्र पति मि वरीस ॥ ५६ ॥ सजन दुर्जन किम जाणिये, जब मुख बोले वाण ॥ सजन मुख अमृत लवे, उर्जन विपनी खाण ॥ 9 ॥ अर्थ नरजब चिंतामणि लही, आले तुं मम हार ॥ धर्म करीने जीवमा, सफल करो अवतार ॥ 9 ॥ सकल सामग्री तेलही, जि ण तरियें संसार ॥ प्रमाद वशे जव कां गमे, कर निज दिये विचार ॥ १५ ॥ दोनपदेश लागे नही, जो नवि चिते आप ॥३१॥ ॥ आप सरूप विचारतां, छुटीमें सवि पाप || 0 | ॥जिण रस पाप कियां तुमें, नि रस तुं कर धर्म । अक्षत्र नक्षत्र जव अनंतना, टीमें मवि कर्म ॥१॥ जिम आनखा दिन गुणी, वरस मास घमी मान ॥ चेति सके तो चेतजे, जो होए हियो शान ॥ ७२ ॥ धन कारण तु फल फले, धम करी थाये मूर ।। अनंत नवनां पाप सवि, दणमा जाये दूर ॥ ३ ॥ जे रचना दिन गती, ते रचना नहि मांऊ ॥ इस्यु जाणी रे जीवमा चेतहि हियमा मांऊ ॥ ३ ॥ आशा अंबर जेवमी, मरवू पगला हेठ ॥ धर्म विना जे दिन गया, तिाण दिन कोधो वेठ ॥ ५॥ रे जिव सुण तुं बापमा, म करिश गर्व गमार ।। मूल स्वरूप देखी करी, जिन जीवशुं तुं विचार ॥६॥ कर्मे को नवि छुटिये, इंश् चं नरदेव ।। राय राणा ममलिक वली, अवर नरज कुण हेव ।। ८५ ॥ वरस दिवस घर घर ज. म्या, आदिनाथ नगवंत ॥ कर्म वशें दुख तिणे लह्यां जे जगमां बलवंत ॥ 6 ॥ पास जिणंद प्रतिमा रहि, नपसर्ग कियो मु. रिंद ॥ ते नपसर्गने टालियो, पद्मावति धरणिंद ॥ ए ॥ काने खीला घातिया, चरणे रांधी खीर ॥ तेहुने कमें नड्यो, चोविशमो श्री वीर ॥ ॥ मन्त्री माया तप करी, पाम्या स्त्री अवतार ॥ सुरपति कोमि सेवा करी, कर्मनो एह प्रकार ॥२॥ पुरुषविषे चूमामणि, नरत नरेसर राय ॥ बाहुबलि हार मनावियो, आज लगें कहेवाय ॥ ए॥ कीधां कर्म न बूटिये, जेहनो विषमो बंध ॥ ब्रह्मदत्त नर चक्कवई, सोल वरस लगें अंध ।। ए३ ॥ आठमो मुभूम चकवी, इक्षितणो नहिं पार ॥ कर्मवशे परिवारशुं, बूमा समुश्मकार ॥ एव ॥ पांच पांमब अतुलो बली, तेह.जम्या वनवास । इस्या पुरुष जगमां वली, दिन पणे फर्या निराश | ए५॥ राम लखमण जगमा वली, जेहन जपे सहु नाम ॥ ते वनवासमाहे रह्या, जे बहु गुणनां धाम ॥ ॥ ए६ ॥ रावण विकट रामें हरायो, कृष्णे हएचो जरासंध ॥ जराकुमर हरिने हरायो, देखो कर्मनो बंध ।। ए ॥ निज पुत्री तातें वरी, तस कूचे मुन हेव । कर्मवशें जब कपनो, त्रिपृष्ट वासूदेव ॥ए । जमतां जमतां अवतर्यो, देवानंदानी कूख ॥ I Jalni Edul International For Personal & Private Use Only www.janorary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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