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________________ मूत्र अर्थः संताप, सूबे मन न आलोवे पाप ॥ गोमय इसे कमें मन नमें, ते नर रोगें पीड्यो रमे ॥ १॥ विश्वासी राखे हित करी, आ. प्रतिलोयण आलोये खरी॥परजव तसु महिमा-ए वमो, रोग न आवे घर दूकमो ॥२॥ करे जे लघु लाघव केटला, हुँ जाणुं नर नहीं ते जला ।। कूते तोलें करे कुंसाट, अधिक लेने आ घाट ।। ७३ ॥ प्रसद पुरुष न बीहे पाप, वली वरांसे पामे माप ॥३०॥ ॥ लो लेश हिमे बहु, नखर क्रियाणु वेचे सहु ॥ ३ ॥ जेह तणे मन अति अनिमान, माने अवरने तृण समान ॥ लेश आपता करे जे खांच, मुख बोलतां नहिं खल खांच ।। ५॥ __ पाप बहुल यांमे विवसाय, इस्या अबर जे करे नपाय ॥ ते नर परजा दुःखियो दीन, सघतां अंग हुवे तमु होना ॥ ६ ॥ संयम सहित गुणे गहगहे, जे सुसाधु शीलें दृढ रहे ॥ ताप्त पूंठ करवे पम्वमो, ते परनव थाये बोबो ॥ 6 ॥ जेहनें धर्म तणी नही धांख, बेदे पंखी जातिनी पांख ॥ तेहy जब आयुटुं पते, थाये तूगे जब आवते ॥ 1 ॥ दया रहित कहे दिन रात, पशुकुमारां से कुजाति।। गाये घाय करे गजगलो, परजव ते याये पांगुलो ॥ नए सरल स्वन्नाव धर्म अहिठाण, जी व जतन जे करे सुजाण ॥ जिन गुरु पाय लक्तो निस होय, रूपें मदन सरीखो सोय ॥ ए०॥ मन वांकमो करे निस पाप, होशें जीव विराधे आप ॥ जेहनें देवगुरुशुं खेश, रूप न पामे ते लवलेश ॥१॥ यंत्रतंत्रने नामी दार, खमें कुंकर कठोर ॥ जे पापी पीके पर जंत, ते पाये वेदना अनंत ॥ ए३ ॥ प्राणी संकट पट्यो आचैत, बंधन मरणे थयो जयजीत ॥ दया करी मूकावे कोय, तमु शिर वेदन निखर नवि होय ॥ ए३ ॥ हियमे नेहने निवि परिणाम, अति अज्ञान महालय जाम ॥ कर्म अशातावेदनी घj, तव पामे एकेंशियपणुं । ए४ ॥ पुण्य पाप पर लोक न आज, त्रिनुवन को नयी इपिराज ॥ जे नर माने ईश्यो विचार, गोयम तेहनें थिर संसार ॥ ५॥ पुण्य पाप ले लोक मकार, जिन से वित मुगुरु नर नार ॥ महिममल मु. निवर डे सही, माने ते संसारी नहीं ॥ ए६ ॥ निर्मल झान अ चारित्र, दर्शन भूषित देह पवित्र ॥ ते नर मरी तरी संसार, थाये शिवपुर तणो शिणगार ॥ ए॥ । ॥३०॥ दोहा-जं जं गोयम पूनियु, वीर जिणेसर पास ।' त कहियु त्रिनुवन गुमें, गिरुआ वचन विलास ॥ ए॥ नविकी लोक तुमें सांजली, वाणी बहुत विचार ॥ पुण्य पापफल प्रगटवे, पीबो हृदय मोकार ॥९॥ पृता नत्तर बेहु मली, अमचालीश प्रमाण ॥ अरथ बहुल तुमें जाणजो, जग जयवंता जाण ॥१०॥ पन्या गुएचा मीनचा तणो, कवि कहे एहज Jan Education International For Personal & Private Use Only www.jaihelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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