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________________ साधु प्रति० ३०॥ एा मुख एली परें कहे, ते नर मरीनें बुद्धि नवि लदे ॥ ६० ॥ माय ताय से मन खरे, व्यवर मानें आदर करे || धर्माधर्मवित जुजुइ, पृबे सावधान जे हुइ ॥ ६१ ॥ आराधे जिनवरनां वयण, जेणे उघमे हियानां नया || देव अने गुरुना गुण गाय, मरी पुरुष ते पंकित थाय ॥ ६१ ॥ मन माने तेम जीव विलास, खानपीनने करो विलास || पढे गुणे धर्मे धुं होय, एम चितवतो मूरख होय ॥ ६३ ॥ कूक्रम तित्तर लावांचमां, सूर हिरण रोऊ वापमां ॥ वन जमतां जे आणे घरी, बीका होये सदा ते मरी ॥ ६४ ॥ जीव सवि ऊपर हित सदा, जय न करेन करावे कदा || पीक पराइ वर्जे जेह, गोयम धीर होवे नर तेह ||६|| लीये वारु विद्या विज्ञान, कूलो विनय करे ज्ञान || विद्यागुरुनें अपमाने बहु, तेहनुं जएयुं निःफल होय महुं ॥ ६६ ॥ विद्यागुरुनी जक्तियें जर्यो, माने विनय गुप विर्यो । एली परें जे जे विद्याजणी सघली सफल होवे तेह तली ॥ ६७ ॥ देई दान हीये न समाइ, मन चिंते में दीधुं कांइ || तस घर लक्ष्मी बहेली मले, गण्या दिवसमांहे पण टले ॥ ६० ॥ योमे धर्ने निस वाघे व्याह, दीये देवरावे जे पर माह ॥ पुण्यथकी परजव रंगरोल, तमु घर कमला करे कहाल || ६ || जे जेहनें मनगमतुं होय, जाव सहित रुपिनें दिये सोय ॥ देई मन उच्चाटन जास, तस घर लक्ष्मी रहे विश्वास || १७ || पशु पंखी माणसनां बाल, जे पापी पीछे विकराल | तस घ र बोरू न होये शिरे, जो होये तो निश्चाय मरे || ११ | जेह तो मन दया प्रधान, गोयम तस घर बहु संतान || पण सांजल्युं सुए कहे जेह, परजत्र बेहेरो याये तेह || १२ || अादीगनें दीतुं जणे, धर्म नवेखे मूरख पणे ॥ कर्म ती गति वि मी जोय, ते परजव जाधो होय || १३ || निखर अन्न ने विरुन वारि ॥ साधुनें दीये जे नर नारि ॥ मन जालि कृपणायें "करे, परजव तस जोजन नवि जरे || १४ || पाके मध जे दव दीये वेम, तेहनी दैव करेशी केम ॥ पाप ती मन नाणे शंक, जे नर जीव सें दिये अंक ॥ १५ ॥ बालां कुलां नीलां हरी, खांतें खुंटे लीलां करी ॥ कीधां कर्म जीवशुं करे, मरी पुरुष कोढी अवतरे ॥ ७६ ॥ ठंड वलद जैसा बालकां, जारें पीमे लोजी थकां ॥ इम पायें पूरा। ये घमो, ते परजव थाये कूबको ॥ 99 || जाति ममात फिरे, जीवनलो जे विक्रय करे ॥ जे कृतघ्न अवगुण आवास, ते नर परजव याये दास | 3G || वि जय हीन वर्जित चारित्र, दान तला गुए नदिय पवित्र || मनसादिक जे नवि संवरे, ए नर दारिणी अवतरे ॥ ७५ ॥ विनयवंत दानें उनसे, चारित्रना गुण वासें बसे || लोकमांदे तम कीर्त्ति घणी, महोटी रुदितणो से चली ॥ ८० ॥ विश्वासी पा ३ Jain Eduda on International For Personal & Private Use Only सूत्र अर्थः ३व्या www.jaklibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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