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________________ माधु महारी, जत्त के (यात्रा) यात्रा जे ते, तया इहु के० (एषः) आ. न्हवणमहुसन के० (स्नानमहोत्सवः) स्नात्रमहोत्सव, तपति था जं के० ( यत् ) जे, तुम्ह के० ( युष्माकं ) एटले तमारूं, मुणिजणअणि सिन के (मुनिजनानिपिई) एटले मुनिजनने न निषेध करेलु एवं. अणलियगुणग्रहण के0 ( अनलीकगुणग्रहणं) विद्यमान एवा गुणगें ले ग्रहण ते जेने विषे एवं स्तोत्र कर्यु. एम के0 ( एवं ) ए प्रकारे, एटले आ कह्या प्रमाणे वृत्तांत बे, माटे पसीय के (प्रसीद ) प्रसन्न था. एटले राजादिएशा कना गुण ग्रहण करवा ते मुनिने निषिदले. केम जे, ते पापी होय, तथा जे गुण तेमां न होय, तेवा गुण कहेवा पके, श्यादिक दोष जे. एटले आ स्तोत्र तो मुनिजनने पण जणवा योग्य ले. तेथी गृहस्ये तो अवश्य पाठ करवो. एम मूचना करी. तथा जे तमारी यात्रा करे, तया जे तमारा आस्तात्रनो पाठ करे, तेना नपर प्रसन्न थान. इसादि मागीलीधुं, एम व्यंग्यार्थनी कल्पना करी शकाय डे. वली हे सुपासनाह के० ( हे श्री पार्श्वनाय ! ) हे श्री पार्श्वनाथप्रनो! तथा हे थंजणपुरयि के० ( हे स्तंजनपुर स्थित!) हे स्तंजनपुरने विष रह्या एवा, ए विशेषण कहां तेणे करी हे जगवन् ! तमारी स्थापना पुरमां करूंछ, एम निवेदन कयु जा ॥ण. श्य के० ( इति ) ए प्रकारे, अहिंदिय के ( अनिदितः) त्रण लोकना लोकोए मनोवांबित पूरक एवा प्रकार, स्तोत्र देखीने प्रशंसा करेला एवा. मुणिवरु के0 ( मुनिवरः) मुनिमां श्रेष्ट एवा, रिअजयदेन के० (श्री अजयदेवः ) श्री अन्नयदेवमूरि जे ते, विनवड के० (विश्पयति ) विज्ञापना करे ले ॥30॥ ॥ परिशिष्ट.॥ श्रीअजयदेवमूरि, नामना आचार्यो घणा थया ले माटे, आ स्तोत्रना करनार नवांगीवृत्ति करनाराज के एम प्रमाण आपवानी आवश्यकता जाणीने तेज अजयदेवरिना शिष्यश्री प्रसन्नचश्मूरिनी आझाये मंवत् ११३० ना वर्षमा गुरुचंइनामा गणीये मागधी जापामां रचेला श्रीमहावीरचरित्र तेनी प्रशस्ति, महोटी होवाथी, न लखतां तेनुं सारमात्र किंचित् ल छं. चश्कुलमा संजमना निधिरूप वीवईमानमूरि थया. जेणे घणोज शु६ मुनिमार्ग प्रकाश करयो बे. तेमना घणा शिष्यो मांचे शिष्यो मूर्य चं समान घणा प्रतापी प्रख्यात यया हता. तेमां प्रयम महा प्रनाविक जिनेश्वररि यया. जेथी खरतर ॥श्या Jain Education International For Personal & Private Use Only www.janelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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