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सा प्रतिक
मूत्र অম্ব:
॥३५॥
___ अर्थः हे जिण के० ( हेजिन! ) हे जिनपरमात्मन्! पास के0 (हे पार्थ!) हे पार्श्वनाथ प्रलो. नइ के ( यदि ) तुह के० (तव ) तमारा रूविण के0 ( रूपेण ) रूपे करीने पेयपारण के० (प्रेतप्रायेण ) प्रेत सरखा किणवि के० (केनापि ) को पुरुषे एटले पार्थ नामे यदादिके, अथवा कोई व्यंतर देवे वेलवियन के (वश्चितः) उग्यो छ. एटले में आज सादात् पार्श्वनाथजी दीठा ए प्रकारे उगायो. तुवि के० (तयापि ) तोपण तुम्हि के० (युप्मानिः) तमोए हनं के० (अहं) हुं. अंगीकरिन के० (अङ्गीकृतः) अंगीकार को छ. एटले जांणे तमेज मागे अंगीकार कर्यो एवीरीते जाणन के0 (जानामि) जाणुंटुं. इय के० ( इति देतोः) ए हेतु माटे मह के ( मम ) मारूं इनिन के० ( ईप्सितं ) डेलु कार्य, जं के0 ( यत् ) न होइ के० (न जवति ) सिझन होय तो, सा के0 ते तुह के० ( तव ) तमारी, नहावाणु के0 ( अपहापना) अपचाजना एटले लघुताई ले. ते हेतु माटे, निकित्ति के ( निजकत्ति ) पोतानो कीर्तिने रखंतह के0 ( रदतस्तत्र ) रदा करता एवा त मारी अवहीरणु के० (अवधिरणा) अपकीर्तिणेय के नैव ) नही, जुझाइ के० (युज्यते ) घटे. एटले यद्यपि कोइ देवे तमारुं रूप धारण करी मने जुवं स्वप्न आप्यु होय में, तेथी हूं आविने आ प्रकारनी तमारी प्रार्थना करुं छं तो पण माझं वांबित सिझन थाय तो, ते पण तमारीज हेलना बे. केमजे अद्यापि न ययेली अवगणना हवे शुं करवी घटे! अर्थात् नज घटे. माटे शीध्र प्रसन्न थान. ए जाव बे. ॥ ए॥
॥ एह मदारिय जत्त, देव इदु न्हवण-मदुसळ ।
जं अगलिय-गुणगदण, तुम्ह मुणि-जण-अणिसिक ।। एम पसीय सुपास-नाह अंतणय-पुरठिय ।।
श्य मुणिवरु सिरि-अन्नय-देन विनव अणिदिय ॥ ३० ॥ जा-हवे विज्ञापनामां को प्रकारनी अपूर्णता न रहेवा देइने स्तुति करे बे.-~अर्थः-देव के हे देव! प्रसङ्ग थयेला पार्श्वनाथ देवने कहे . एह के० (एषा ) एटले आ, मदारिय के० ( मदीया)
॥शए।
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