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________________ मूत्र साधु प्रति अर्यः ॥३१॥ जणएल के (जनकेन)पिनाने, तुल के0 (तुल्यः ) समान एवा. एटले जेम पिता पुत्रनु कल्याण करे, तया दुःखनो नाश करे. तथा सन्मार्गने देखामे. तया असत् मार्गने विषे जे प्रवृत्ति तेनो निषेध करे ले. तेम तमो करो तो, माटे पिता समान एवा. तथा जं के० ( यत्-येन) जेणे, हियावहु के० ( हितावहः) एटले हितकारी एवो अने, रम्मु के० ( रम्य: ) रमणीय एवो. धम्मु के० (धर्मः ) एटले धर्म जेते, जणिय के० ( जनितः ) नत्पन्न कर्यो , एवा. तया, जयजंतुपियामहु के० ( जगङन्तुपि तामहः) जगतोषना पितामह, एटले पिताना पण पिता एवा. सो के सः) ते, पास के० (पार्थः) पार्श्वनाथप जे ते जयन के (जयतु ) जयवंता वत्तों. ॥१५॥ ॥ नुवणारस्म निवास-दरिय-परदरिसल-देवय । जोणि-पूयण-खित्त-चाल-खुद्दासुर-पसुवय ।। तुह नत्त सुनछ, सुछु अविसंध्लु चिहि । . श्य तिहुअण-वण-सीह, पास पावा पणासहि ॥ १६ ।। अर्थः-भुवणारणनिवासदरिय के ( भुवनारायनिवासदृप्त ) एटले जगतरूप अरण्यने विषेने निवास ते जेमनो एवी सती मद सहित एटले अहंकार युक्त एवी, परदरिसणेदवय के० (परदर्शनदेवताः ) अन्यदर्शननी देवता एटले बुझा दिक देव जेते, तथा, जोणिपूयण खित्वाल के ( योगिनीपूतनाक्षेत्रपाल ) योगिनी के सि ले दुष्ट मंत्र ते जेने एवी मनुष्य जाति खियो, तया पूतना के दुष्ट व्यंतरी, तथा क्षेत्रपाल के क्षेत्रना नायक एवा व्यंतर देव, तया खुद्दासुरपमुवय के कुशमुरपशुवजाः, क्रुशसुर एटले दुष्ट एवा जुवनपति प्रमुख असुर, तेज, पशुना समूह जे ते, तुह के (वत्तः) एटले तमारायकी, 7तह के (नत्रस्ताः) एटले अतिशय त्रास पामता एवा, मुन के (मुनष्टाः) एटले अदृश्य यएला सता, सुडु के० (मुष्तु एटले अतिशे करीने, अविसंलु के० (विसंस्थुलं) एटले सावधानपणे, अर्थात् जय सहितपणे, चिहि के० (तिष्ठंति ) ए. टले रहे बे, अर्थात् वर्ते हे. 299 dan Educatie International For Personal & Private Use Only www.jainerary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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