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साप
मूत्र
प्रतिक
मर्य
॥३६॥
| शमी गया के कान ते जेमना एवा. अने न के० ( नाष्टाः) नाश पाम्पाले होठ ते मा एमा. नया चरुखुरकोण के (हीणचक्षुषः ) नाश पाम्यां ने नेत्र ते जेमनां एवा. तथा खएण के (क्येण ) क्षयरोगवके, खुल के० (हुमाः) दुर्बल ययेला एवा. तथा सूतिण के० (शूलेन) शूलरोगे करीने मल्लिय के० (शस्यिनाः) शल्यवाला ययेला एवा, नर के (नराः) पुरुषो जे ते, हे जिण के० (हे जिन परमात्मन् ! ) तुह के० ( तव ) तमारा सरणरसायणेण ( स्मरणरसायनेन ) सरण के स्मरणरूप, रसायणेण के रसायणे करीने अथवा (शरण रसायनेन) तमारु शरणुं करवू ते रूप, रसायणेण के रसायने करीने लहू के० ( लघु ) शीघ्र, पुणलव के० ( पुनर्नवाः ) फरीथी नवा एवा हुंति के (नवंति ) होय . एटले जाणे को दिवस रोग हतोज नही एवा याय बे. माटे हे जयधन्वंतरि के (हे जगइन्वंतरे!) जगत् जीव प्राणिमात्रना संसाररूप रोगने हरवामां धन्वंतरि वैद्य समान एवा हे पास के (हे पार्थ!) हे पार्श्वनाथम नो! महवि के० ( ममापि ) मारो पण, रोगहरो के रोगने हरनार एषा, तुह के (वं) एटले तमो जब के थान. एटले जना आश्रय करवा मात्रयी अयवा जेनुं नाम स्मरण करवा मात्रयी, अथवा तेनु शरणुं करवा मात्रयी पूर्व कहेला एवा महारोग तथा राजरोग, तथा असाध्य रोग पण नाश पाम्या दे, तो महारो साध्यरोग नाश करवो ते तो तमारी गणत्रीमा आवसेज नहो, प नाव ले. ॥ ३ ॥
॥ विळा-जोश्स-मंत, तंत-सिनि अपयतिण ।
नुवणऽन्नुन अविह, सिहि सिनहि तुद नामिण ॥ तुद नामिण अपवित्त-नवि जण हो। पवित्तन ।
तं तिदुअण-कल्लाण-कोस तुह पास निरुत्तन ॥४॥ अर्थः-हे जगवन् तुह के० ( तब ) तमारा, नामिण के० (नाम्न।) नामे करीने एटले नाम स्मरणे करीने, अथवा थ्याने करीने, “ एकाग्रचित्ते तमारं म्मरण करवाथीएटलो नाव जाणवो." विडाजोइसमंतप्तसिदिन ( विद्याज्योतिर्मन्त्रतन्त्रसिहयः) विङा के विद्या जोइस के ज्योतिष मंत. के मंत्र तंत के तंत्र तेमनी सिदिन के (सिक्ष्यः) सिझियो जे ते अर्थात् सफल यजे ते, एटले विद्यासिद्धि, ज्योतिः मिहि, मंत्रसिदि, तंत्रसिद्धि जेते, तया जुवणानुन के ( भुवनाद्भुता) लोकन
॥२६२
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