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________________ साधु ॥ लोच करवाना प्रारंनमा कानस्सग्ग करवानो विधि, ।। प्रति लोच करवो होय ते दिवसे लोच कर्या अगान इरियावही पमिक्कमी खमा० श्वा० सचित्तचित्त रज महामावणी अर्थः कानस्सग करूं? श्वं करेमि कानस्मग्गं अन्नब कही चार लोगस्सनो कानस्सग्ग “सागरवर गंजिरा" मुधी करवो. पारी॥२५॥ ने प्रगट लोगस्स कहेवो. ॥ को साधु काल करे त्यारे साधुने करवानो विधि. ।। जे साधुए काळ को होय तेनी पासे आवी एक साधु आ प्रमाणे कहे.-" कोटिकगण, वज्रोशाखा, चंकुळ, (आचार्य श्री जिननक्तिमूरि) विजयसिंहमूरि, नपाध्यायजी (श्रीकमाकल्याणकजो) सकळचंदजी, स्थवीर श्री गौतम, महत्तरा श्री चंदनबाला, अमुक मुनिना शिष्य (मुनि ) महा पारिगवणीआ करेमि कानस्सगं." अन्नब कही एक नवकारनो कानस्सग्ग करी पारीने प्रगट नवकार कहे. पडीत्रणवार 'बोसिरे' कहे. पनी श्रावक संस्कार करवा लइ जाय. सारपबी जीर्ण काचली प्रमुख लांजीए. जीर्ण वस्त्र परवीए. अबोट अचित्त पाणीए नूमिशुदि हस्तपाद शुक्षि करीए. पनी श्रावक पासे गोमूत्रादि बंटावीने अवळा देव वांदीए. तेनी विधि आ प्रमाणे. ॥ अंतिम देव वांदवानो विधि. ।। काळ करेल साधुना एक शिष्य अथवा तेनाथी लघु पर्यायवाला कोई शिष्य प्रथम अवळो काजो (हारथी आसन तरफ) लेय. वस्त्र अवळा पहेरे. पड़ी काजा संबंधि इरियावही पमिक्कमीने अवन देव वांदवानी शरुआत करे. | प्रथम कहाणकंदनी एक थो, पठी एक नवकारनो कानस्सग्ग, पनी अन्नब अरिहंत चे0 जयवि नवसग्ग नमोऽर्हः || तू जावंति के खमासमण जावंतीचे० नमोत्युणं चैसवंदन लोगस्सा एक लोगस्सनो कानसम्ग अन्न सस्सन० इरि-|| ॥५३॥ यावहीन खमासमण देश. अविधि आशातना मिहामि दुक्कम कहे. पली सवळो काजो लेते संबंधि इरियावही पमिक्कमे. ॥ dan Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.600204
Book TitleSadhu Sadhvi Yogya Pratikraman Kriya Sutro
Original Sutra AuthorSirsala Jain Pathshala
Author
PublisherSirsala Jain Pathshala
Publication Year1908
Total Pages372
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size9 MB
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