SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 132
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ गळे वि धम्मविण्यं जत्युत्तरियं खनिज अक्षत्थ । आपुचित्तु विहारो तत्य ज जासिड कप्पे॥ १९ ॥ संविग्गविहारीणं. किं पुण तेसिं महाणुजावाणं । श्रह उवसंपयाणं कप्पिअनबोवयाराणं ॥ १३ ॥ धम्मविष वि तेसिं आपुत्रिय पछिश्राण जह परमो । तह तेहि गाविधस्सवि णायबो पंथगमुणिस्स ॥ १४ ॥ एसो वि अ सिढिलोत्ति य पमिमारिमयं इयं हवा इत्तो। साहूहिण सिढिलो तकने अणुम होइ॥ १५॥ कप्पिसेवाखघावगासदप्पेण सेखगस्सावि । सिढि खत्तं प उ नंगे मूखपन्ना जंजणिकं ॥ १६॥ सिढिलिश्रसंजमकहावि होळ उजामति जइ पहा । संवेगा तो बसेखव श्राराहया होंति ॥ १७ ॥ पासत्थयाश्दोसा सिजायरपिंजोश्रणाहिं । उववाश्श्रा य इत्तो णायनयणस्स वि तीए ॥ १८ ॥ श्रनुजा विहारो एत्तोच्चिय मुत्तु तेण पम्बिंधं । पमिवन्नो मूलाई वयनंगो पुण जन जणिनं ॥ १ ॥ अस्स जाव दाणं तावयमेगं पिणो अश्क्कमइ । एगं अश्क्कमंतो अश्क्कमे पंच मूलणं ॥ २०० ॥ लववजा नत्तरगुण-।। विराहणाए अहीसणिकत्तं । जह उ सुकुमालिआए ईसाणुववायजोग्गाए ॥ २०१॥णिक्कारणपमिसंवा चरणगुणं णामत्ति जंजणिकं । श्रनवसायविसेसा पमिबंधो तस्स पठित्ते ॥ २० ॥ इय गुणजुयस्स गुरुणो उच्मवत्थं कयाऽ पत्तत्स ।। सेवा पंथगणाया जिद्दोसा होणायबा ॥२०३ ॥ जे पुण गुणेहि हीणा मित्रुद्दिठी य सवपासस्था। पंथगणाया मुझे मीने बोखंति ते पावा ॥२०४॥ चरणधरणाखमो विश्र सुझ मग्गं परूवए जो सो । तेण गुणेण गुरुच्चिय गवायामि जं नाणियं ॥ २०५॥ सुझं सुसाहुमग्गं कहमाणो जव तश्चपरकंमि । अप्पाणं श्यरे पुण गिहत्यधम्माङ चुकंति ॥ २०६॥ जवि न सकं काउं सम्म जिपजासिकं अणुवाणं । तो सम्मं नासिका जह जाषिकं खीणरागेहिं ॥ २०७॥ उसनो य-10 Jain Educati o nal For Personal & Private Use Only TATibrary.org
SR No.600196
Book TitleSyadwad bhasha Devdharmpariksha Adhyatmopnishad Adhyatmikmatpariksha Yatilakshansamucchay
Original Sutra AuthorManvijayji, Yashovijay Upadhyay
Author
PublisherJinshasan Aradhana Trust
Publication Year
Total Pages138
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript
File Size15 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy